खुद आर्मी में नहीं जा पाए तो सरहदी गांव में ट्रेनिंग देनी शुरू की, सेंटर के 300 युवक सेना में https://ift.tt/2KihPer

जम्मू के बिशनाह के नौगरां गांव के रहने वाले जितेंद्र सिंह बचपन से ही सेना में भर्ती होना चाहते थे। उन्होंने इसकी तैयारी भी की। कम हाइट की वजह से उनका सेलेक्शन नहीं हो सका। हारने के बजाय जितेंद्र ने नई पहल की। उन्होंने उन लड़कों को ट्रेनिंग देना शुरू किया, जो सेना में भर्ती होना चाहते थे।
साल 2014 में जितेंद्र सिंह ने गांवों में खेतों के बीच कच्चे रास्ते पर ही कुछ युवाओं को ट्रेनिंग देना शुरू किया। शुरुआत में कुछ ही युवक आते थे। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ने लगी। थोड़े ही दिनों में इनका ट्रेनिंग सेंटर राइजिंग एथलेटिक क्लब नौगरां (RECN ) के नाम से मशहूर हो गया। फिर भारत-पाकिस्तान सीमा के साथ लगते कई गांवों के युवा सुबह-शाम ट्रेनिंग के लिए आने लगे।

इस ट्रेनिंग स्कूल की खास बात यह है के यहां सेना की ही तरह कोई जाति, धर्म या इलाका मायने नहीं रखता। सेना में जाने की चाह रखने वाला कोई भी नौजवान सिर्फ सौ रुपये प्रति माह देकर ट्रेनिंग ले सकता है। वह जब तक चाहे ट्रेनिंग ले सकता है। गरीब परिवारों से आने वाले कई युवाओं को फ्री में ट्रेनिंग दी जाती है। गांववालों के लिए भी जितेंद्र सिंह एक मिसाल बन रहे हैं। बच्चे उन्हें 'चाचू ' कहकर पुकारते हैं। गांववालों के लिए वह किसी सैनिक अफसर से कम नहीं।
जितेंद्र के ट्रेनिंग सेंटर से निकले 300 से ज्यादा युवा सेना, पैरा मिलिट्री और पुलिस में भर्ती हो चुके हैं। खुले आसमान और कच्चे रास्तों के इस सेंटर से निकले राजेश शर्मा सेना में हवलदार हैं। वह इंटरनेशनल लेवल के शूटर भी हैं। चार युवा देश की प्रतिष्ठित नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) में पोस्टेड हैं। इस समय इस ट्रेनिंग स्कूल में 350 युवा हैं। कुछ सुबह आते हैं। कुछ शाम को तो कुछ दोनों समय ट्रेनिंग लेते हैं। इसका समय सुबह 4:30 बजे से 7 बजे तक और शाम 4 से 6 बजे होता है। सर्दी हो या गर्मी यह सेंटर चलता रहता है।

जितेंद्र सिंह कहते हैं ,'पहले मैंने अपने भाई और बहन के बच्चों को ट्रेनिंग देना शुरू किया। थोड़े दिनों बाद ही वे सेना में भर्ती हो गए। फिर मैंने दूसरे युवाओं को ट्रेनिंग देने का काम शुरू किया। आज मैं बहुत खुश हूं के मुझसे ट्रेनिंग लिए बच्चे अलग-अलग फोर्सेज में जाकर देश की सेवा कर रहे हैं।
यहां सीमा से सटे गावों में लोगों को आए दिन पाकिस्तानी गोलीबारी का सामना करना पड़ता है। इससे यहां के युवाओं के मन में भी सेना और बीएसएफ में भर्ती होने की ललक होती है। ऐसे में जितेंद्र का स्कूल और उनकी ट्रेनिंग का तरीका गांववालों और युवाओं के लिए इंस्पिरेशन है। यहां आने वाले युवा नशाखोरी की आदतों से भी दूर होकर फिजिकल फिटनेस की तरफ बढ़ रहे हैं।

जितेंद्र के छात्र आनंद सिंह पाकिस्तानी सीमा के करीब बसे रामगढ़ सेक्टर से हैं। तीन महीने से यहां आ रहे हैं और सीआईएसएफ के लिए फिजिकल टेस्ट पास कर चुके हैं। वह कहते हैं जब यहां आया था तो बिलकुल जीरो था , जबकि आज फिट हूं। अमित सिंह चाडक कहते हैं कि यह स्कूल देश को कई सैनिक दे चुका है। जितेंद्र उन युवाओं के फॉर्म भरने के पैसे भी खुद देते हैं जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं।
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Labels: Dainik Bhaskar
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