देश में अभी न तो कोरोना का पीक आया है और न ही वैक्सीन बना है, ऐसे में बहुत गलत है यह कहना कि मुझे क्या फर्क पड़ता है? https://ift.tt/3lg9eX8

भारत में कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा एक लाख के पार पहुंच चुका है। ये बात डराने वाली है, क्योंकि इस वायरस से मरने वालों की संख्या में रोज़ाना इज़ाफा हो रहा है। मौत का आंकड़ा एक लाख तक पहुंचाने में सबसे बड़ी हिस्सेदारी महाराष्ट्र की है, यहां अब तक 34 हजार से भी ज्यादा मौतें हो चुकी हैं।
लेकिन, इसके बावजूद भी लोगों में ब्रेफिक्री है। बेफिक्री भी ऐसी कि मानो इन्हें इन एक लाख मौतों से कोई फर्क नहीं पड़ता। दैनिक भास्कर ने देश के 6 शहर मुम्बई, दिल्ली, अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ और इंदौर में कोरोना को लेकर लोगों का रवैया कैसा है, ये जानने की कोशिश की। साथ ही यह भी जाना कि आखिर मास्क ना लगाने को लेकर उनके पास क्या दलील है? और कैसे-कैसे बहाने हैं?
इन 6 शहरों के बहानेबाजों ने मास्क ना लगाने को लेकर अपने-अपने लॉजिक दिए। लेकिन अफसोस, कोरोना संक्रमण के इस दौर में इस तरह के लॉजिक काम नहीं आएंगे। कोरोना का संक्रमण जात-पात या ओहदा नहीं देखता है। इसके कई उदाहरण आप पिछले 6 महीनों में देख चुके हैं।
ऐसे में जरूरी है कि जब हम घर से बाहर निकलें तो यह ध्यान रखना है कि कोरोना की मौतों से हम सबको फर्क पड़ता है और जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती तब तक मास्क ही वैक्सीन है। देखें, ये वीडियो रिपोर्ट...
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Labels: Dainik Bhaskar
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