Friday, 16 October 2020

हे पिता; मेरे जीवन के पहले पुरुष, मेरे हीरो, मुझसे मत कहो मैं तो आपके बेटे जैसी हूं, हो सकता है खुद को आपके बेटे से बेहतर साबित कर दूं, जो मैंने किया भी है https://ift.tt/37ct5T1

नवरात्र के नौ दिन हमारी विशेष सीरीज सुनो पुरुष! स्त्री का उसके जीवन में नौ रिश्तों के रूप में आए हर पुरुष को संबोधन। हर रिश्ते से जुड़ी उसकी उम्मीद। हर वो अधिकार, जो उसका है लेकिन उसे मांगना पड़ रहा है। हर वो उड़ान, जिसपर उसका नाम लिखा है पर आसमान से उड़ने इजाजत मांग रही है।

हर कदम पर पुरुष के साथ तुलना के बीच अपने पिता, भाई, गुरु, दोस्त, सहकर्मी, पति, बेटे, दामाद और अंजान इंसान को बता रही है कि उसने हर रिश्ते के साथ कामयाबी की कितनी गौरवशाली कहानियां लिखी हैं और आगे भी लिखेगी। स्त्री के जीवन में सबसे पहले आने वाले पुरुष, पिता को उसका संबोधन, सुनो पुरुष

हे पुरुष। मैं न कमजाेर थी, न हूं। मैं बेटा नहीं लेकिन काबिल बेटी हूं। अपने आप में संपूर्ण हूं। सिर्फ बेटा हो जाना ही बेहतर होने का कोई मापदंड नहीं है। मैं बेटी के रूप में भी, बिना किसी तुलना के तुम्हारी अच्छी संतान हो सकती हूं। मैं पूरा बचपन तुम पर आश्रित हूं।

मुझे अपनी कमजोरी की तरह नहीं, अपनी शक्ति की तरह बड़ा करो। कमजोर होना तो कोई भी सिखा देगा, पिता और ससुर के सहयोग से राजनीति में मुकाम पाने वाली राजस्थान की पहली महिला विधानसभा अध्यक्ष व नौ बार विधायक रहीं सुमित्रा सिंह ने भास्कर संवाददाता प्रेरणा साहनी से साझा किया अनुभव

मेरा जन्म हुआ ताे मेरी दादी बहुत राेई, तब पिता ने उनसे कहा कि घर में लक्ष्मी और सरस्वती स्वयं आई हैं, खुशियां मनानी चाहिए

1931 में किसारी गांव में जन्म के 6 दिन बाद ही मेरे पिता के छाेटे भाई और स्वतंत्रता सेनानी चाैधरी लादूराम ने मुुझे गाेद ले लिया। मेरे पिता के पहले ही एक पुत्री थी, यानी मेरी बड़ी बहन। एक बेटा हुआ जो नहीं रहा। फिर जब मेरा जन्म हुआ ताे मेरी दादी बहुत राेई। तब पिता जी ने उनसे कहा कि घर में लक्ष्मी और सरस्वती स्वयं आई हैं, खुशियां मनानी चाहिए।

नामकरण संस्कार पर पंडित जी ने कहा कि मेरे भाग्य में राजयाेग है। पिताजी काे मुझपर पूरा यकीन था। प्यार से वाे मुझे साेमा बेटा बुलाते थे क्याेंकि उनकी नजराें में बेटी और बेटे में काेई फर्क नहीं था। साेचिए, आज से लगभग नाै दशक पहले काेई पिता अपनी बेटी पर इतना यकीन कर सकता था कि 6 साल की उम्र में मुझे झुंझुनूं के छाेटे से गांव से निवाई स्थित वनस्थली पढ़ने भेजा।

तब न बेटी होने पर खुशियां मनाई जाती थीं और न उच्च शिक्षा का माैका दिया जाता था। ऐसे में मेरा पढ़ने के लिए घर से दूर जाना मेरे पिता की आजाद और दूरगामी सोच का ही परिणाम था। वनस्थली में बिताए 14 सालाें में पढ़ने के साथ-साथ घुड़सवारी और तैराकी अच्छे से सीखी। जब मैं 9 साल की थी तब स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण पिताजी काे जेल जाना पड़ा।

जब मैं उनसे जेल में मिली ताे उन्हें देखकर मेरी आंखें भर आईं। उसी क्षण राजशाही से मुझे नफरत हाे गई । कुछ सालाें बाद टीबी के कारण उन्हें जेल से मुक्ति मिल गयी लेकिन तब इस बीमारी का इलाज न होने की वजह से पिताजी चल बसे। तब वनस्थली के संस्थापक हीरालाल शास्त्री जी ने पिताजी से किए वादे के तहत अपने स्तर पर मुझे पढ़ाया।

मैंने वनस्थली से निकलकर लड़काें के साथ ही महाराजा काॅलेज से एमए किया और फिर लड़काें के काॅलेज में ऑनरेरियम पर लेक्चरर के ताैर पर पढ़ाना शुरू किया। पं. जवाहर लाल नेहरू ने जब 15 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने की बात रखी ताे किसान नेता कुंभाराम चाैधरी नेे मेरा नाम सुझाया।

कुंभाराम से मैं एक बार पहले मिल चुकी थी। उस दाैरान मेरे ससुर चाैधरी हरदेव सिंह जाे स्वयं स्वतंत्रता सेनानी थे, ने भी मेरा बहुत साथ दिया और मैंने 1957 में समाजवादी सोच के साथ राजनीति में कदम रखा । यह सफर 2009 तक चला। आज जब मुड़कर देखती हूं तो अपने पिता की दूरदृष्टि पर गर्व होता है। उन्होंने अगर मेरे बेटी होने के कारण मुझे शिक्षित करने का निर्णय नहीं लिया होता, तो तस्वीर कुछ और ही होती। मेरे पिता वे जीवन में आए वे पहले पुरुष रहे जिन्होंने मेरे जीवन काे सार्थक मायने दिए।

पं. जवाहर लाल नेहरू ने जब 15 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने की बात रखी ताे किसान नेता कुंभाराम चाैधरी नेे मेरा नाम सुझाया, जिनसे मैं एक बार पहले मिल चुकी थी - सुमित्रा सिंह

सुमित्रा सिंह होने के मायने

  • नौ बार झुंझुनूं से विधायक
  • राजस्थान की पहली विधानसभा अध्यक्ष
  • शिक्षक के रूप में उत्कृष्ट कार्य


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
स्वतंत्रता सेनानी चाैधरी लादूराम और उनकी पुत्री सुमित्रा सिंह


from Dainik Bhaskar /national/news/hey-dad-first-men-of-my-life-my-heroes-do-not-tell-me-i-am-like-your-son-may-prove-myself-better-than-your-son-which-i-have-also-done-127821810.html

Labels:

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home