Monday, 31 August 2020

चीन का सामना करने के लिए अमेरिका को जर्मनी के साथ साझेदारी करनी चाहिए https://ift.tt/3lvcBdD

अगर जो बाइडेन राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो उनकी सबसे बड़ी विदेश नीति चुनौती चीन होगा। लेकिन यह वह चीन नहीं होगा जिसका सामना उन्होंने बराक ओबामा के साथ किया था। यह ज्यादा आक्रामक चीन होगा, जो अमेरिका के तकनीक में प्रभुत्व को उखाड़ना चाहेगा, हांगकांग मे लोकतंत्र का दम घोंटेगा और आपका निजी डेटा चुराएगा।

वैश्विक व्यापार तंत्र को बिगाड़े बिना चीन को दबाने के लिए जर्मनी के साथ साझेदारी की जरूरत पड़ेगी, जिसे बनाने में ट्रम्प असफल रहे हैं। जी हां, आपने सही पढ़ा? सोवियत संघ के साथ शीत युद्ध बर्लिन में लड़ा और जीता गया। और चीन के साथ भी व्यापार, तकनीक और वैश्विक प्रभाव पर शीत युद्ध बर्लिन में लड़ा और जीता जाएगा। जैसा बर्लिन करता है, वैसा ही जर्मनी करता है और जैसा जर्मनी करता है, वैसा ही यूरोपियन संघ करता है, जोकि दुनिया का सबसे बड़ा सिंगल मार्केट है। और जो भी देश यूरोपियन संघ को अपनी तरफ कर लेगा, वहीं 21वीं सदी में डिजिटल कॉमर्स के नियम तय करेगा।

चीन का सामना करने के लिए गठबंधन जरूरी

‘द राइज एंड फाल ऑफ पीस ऑन अर्थ’ के लेखक माइकल मंडेलबॉम कहते हैं, ‘पहले और दूसरे विश्वयुद्ध तथा शीत युद्ध में अमेरिका जीतने वाले पक्ष में था, क्योंकि हम मजबूत गठबंधन में थे। पहले विश्वयुद्ध से हम देर से जुड़े, दूसरे विश्वयुद्ध में कम देर से जुड़े। शीत युद्ध में सोवियत संघ को हराने का गठबंधन हमने बनाया। चीन का सामना करने के लिए हमें यही मॉडल अपनाना चाहिए था।’

अगर हम इसे केवल अमेरिका को महान बनाने के लिए चीन के खिलाफ खड़े होने की कहानी बना देंगे तो हम हार जाएंगे। अगर हम इसे दुनिया बनाम चीन की कहानी बनाएंगे तो हम बीजिंग को झुका सकते हैं। ट्रम्प ने चीन की अर्थव्यवस्था को स्थायी रूप से खोलने के लिए कोई कदम नहीं उठाए। खबरों के मुताबिक, ‘डील के बाद से चीन ने अमेरिकी बैंंकों और किसानों के लिए अपने बाजार खोलने के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन वह अमेरिकी उत्पाद खरीदने के मामले में अब भी बहुत पीछे है।’

चीन के लायक हैं राष्ट्रपति ट्रम्प

ट्रम्प चीन पर पिछले किसी भी राष्ट्रपति से ज्यादा सख्त रहे हैं, जो ठीक भी है। चीन में व्यापार करने वाला मेरा एक दोस्त कहता है, ‘ट्रम्प वे अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं हैं, जिसके लायक अमेरिका है। लेकिन वे वह राष्ट्रपति हैं, जिसके लायक चीन है।’

लेकिन मैं ‘चीन’ शब्द की जगह ‘130 करोड़ चीनी भाषी’ कहना पसंद करता हूं। क्योंकि, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले 130 करोड़ चीनी भाषियों का व्यवहार ट्रम्प की ‘अमेरिका-पहले-अमेरिका-अकेले’ रणनीति वाले 32.8 करोड़ लोग आसानी से नहीं बदल पाएंगे।

इसलिए मुझे लगता है कि ट्रम्प द्वारा चीन और जर्मनी पर विभिन्न मुद्दों के लिए एक साथ प्रहार करना ठीक नहीं है। ट्रम्प को चांसलर एंगेला मर्केल के साथ साझेदारी को प्राथमिकता देनी चाहिए थी, जो चीन की गुंडागर्दी को लेकर हमारी ही तरह चिंतित हैं। जर्मनी मैन्यूफैक्चरिंग सुपरपॉवर है, जो चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध में महत्वपूर्ण सहयोगी साबित हो सकता है।

जर्मनी के लोग अमेरिका के साथ संबंधों को ज्यादा तवज्जो दे रहे

अब ट्रम्प भी वहां से अपने कुछ सैनिक वापस बुलाकर जर्मनी पर जोर दे रहे हैं। इसका नतीजा है कि मई 2019 में प्यू रिसर्च ने बताया कि जर्मनी के लोग चीन की तुलना में अमेरिका के साथ संबंधों को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं। आज 37% जर्मन अमेरिका के साथ संबंधों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जबकि 36% चीन को। राष्ट्रपति बनने पर ट्रम्प ने ट्रांस-पैसिफिक साझेदारी समझौता खत्म कर दिया, जिसने अमेरिका के हित में 21वीं सदी के मुक्त व्यापार नियम तय किए थे और जिसमें चीन को छोड़कर 12 बड़ी पैसिफिक अर्थव्यवस्थाएं शामिल थीं। और अब वे जर्मनी के साथ संबंधों को कमजोर कर रहे हैँ।

इस सबके बीच ट्रम्प के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पॉम्पिओ ने घोषणा कर दी, ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से आजादी हमारा मिशन है और अब हम चीन को कमजोर करने के लिए समान सोच रखने वाले लोकतंत्रों के साथ गठजोड़ कर नया समूह बनाएंगे।’ यह सुनकर मैं नि:शब्द हो गया।

बिना सहयोगियों के गठबंधन बनाना मुश्किल है। अगर वाकई में यह हमारा ‘मिशन’ है, तो आप रूस को लक्ष्य करने के लिए जर्मन डिफेंस द्वारा किए जा रहे खर्च के खिलाफ छोटी-छोटी शिकायत करना बंद क्यों नहीं कर देते? यह सच है कि यूरोपीय संघ के देश वाशिंगटन और बीजिंग के बीच जारी गोलीबारी में फंसने और अमेरिकी या चीनी टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम में से किसी एक को चुनने को लेकर सजग हैं। हालांकि पिछले साल यूरोपीय संघ ने चीन को ‘प्रणालीगत प्रतिद्वंद्वी’ बताया था।

चीन जिस चीज से सबसे ज्यादा डरता है, ट्रम्प ने उसे ही बनाने से इनकार कर दिया है। यानी वाशिंगटन और बर्लिन के इर्द-गिर्द बनाया गया अमेरिका और यूरोपियन यूनियन का संयुक्त गठबंधन, जिसमें ट्रांस-पैसिफिक साझेदारी शामिल है। सोवियत संघ को रोकने के लिए 1970 के दशक में रिचर्ड निक्सन और हेनरी किसिंगर की सबसे अच्छी चाल थी अमेरिका और चीन का गठबंधन बनाना। आज चीन को संतुलित करने के लिए सबसे अच्छी चाल होगी अमेरिका और जर्मनी के बीच गठबंधन बनाना। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
थाॅमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2EM4Hfb

Labels:

रैना के हटने के बाद हरभजन के खेलने पर भी संशय, चेन्नई सुपरकिंग्स के जोश हेजलवुड भी हालात को लेकर फिक्रमंद https://ift.tt/31LQ1FE

चेन्नई सुपर किंग्स से जुड़े 13 सदस्यों के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद फ्रेंचाइजी के दूसरे खिलाड़ी परेशान हैं। सुरेश रैना पहले ही घर लौट चुके हैं। हरभजन सिंह के भी खेलने पर संशय है। वे मंगलवार को दुबई जाने वाले हैं। हरभजन से जुड़े एक सूत्र ने कहा- वे चिंतित हैं और खुद के कार्यक्रम में बदलाव कर सकते हैं या हट सकते हैं। इस बीच, सीएसके के ऑस्ट्रेलियन तेज गेंदबाज जोश हेजलवुड भी चिंतित हैं। लीग के ब्रॉडकास्टर का एक क्रू मेंबर पॉजिटिव आया है।

हर फ्रेंचाइजी 46 करोड़ के नुकसान का मुआवजा मांग रही, बोर्ड का इनकार

कोरोना के कारण मैच बिना फैंस के खेले जाने हैं। स्पाॅन्सर से मिलने वाली राशि में भी कमी आई है। ऐसे में सभी फ्रेंचाइजी बोर्ड से मुआवजा मांग रही हैं। हर टीम को लगभग 46 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान है। लेकिन, बोर्ड ने इससे इनकार किया है।

बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा, ‘फ्रेंचाइजीज का मुआवजे के बारे में सोचना मूर्खतापूर्ण है। अगर लीग नहीं होती तो उन्हें कुछ नहीं मिलता। आयोजन के लिए विभिन्न एजेंसियों को पैसा कौन दे रहा है। मैच ऑपरेशन का खर्च कौन उठा रहा है।’

इस अफसर ने आगे कहा, ‘हमने साफ कर दिया है कि कोई मुआवजा नहीं मिलेगा। टीमें दबाव बना रही हैं। क्या वे पैसे नहीं कमा रहीं। हर टीम लगभग 150 करोड़ कमाएगी। उनकी मांग ठीक नहीं है।’ राज्य संघ के एक सदस्य ने कहा, ‘इस तरह की बातें फ्रेंचाइजी से नहीं की जा रही हैं। बोर्ड का एक व्यक्ति निजी कारणों से इन बातों को उकसा रहा है।’



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
हरभजन से जुड़े एक सूत्र ने कहा- वे चिंतित हैं और खुद के कार्यक्रम में बदलाव कर सकते हैं या हट सकते हैं। (फाइल)


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/32GBPgt

Labels:

ऑनलाइन गेमिंग का रेवेन्यू 22% की रफ्तार से बढ़ रहा; 2019 में इंडस्ट्री की वैल्यू 6200 करोड़ थी, 2024 तक 25 हजार करोड़ रु. हो जाएगी https://ift.tt/2YROsnY

देश में ऑनलाइन गेमिंग का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन के मुताबिक, अभी देश में करीब 30 करोड़ ऑनलाइन गेमर हैं। रिपोर्ट्स के मानें तो 2022 तक इनकी संख्या 44 करोड़ तक पहुंच जाएगी। ऑनलाइन गेमिंग का रेवेन्यू भी 22% की रफ्तार से बढ़ रहा है।

गेमिंग का गणित

2023 तक रेवेन्यू 11 हजार 400 करोड़ रु. तक बढ़ने का अनुमान है। यह 2014 की तुलना में करीब 3 गुना है। तब रेवेन्यू 4400 करोड़ रु. था। दुनिया के गेमिंग मार्केट में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी हिस्सेदारी एशिया-पैसिफिक की है। दुनिया ने 2019 में 11.25 लाख करोड़ रुपए का रेवेन्यू जनरेट किया। इसमें एशिया-पैसिफिक रीजन ने 5.34 लाख करोड़ रुपए की कमाई की।

2024 तक 4 गुना बढ़ जाएगी वैल्यू

  • ऑनलाइन गेमिंग की वैल्यू 2024 तक 4 गुना तक बढ़ने की उम्मीद है। यह 2019 में 6200 थी जबकि 2024 तक 25 हजार 30 करोड़ तक हो सकती है।
  • दुनिया में सबसे ज्यादा रेवेन्यू जनरेट करने वाला देश अमेरिका है। उसने 2.7 लाख करोड़ रु. कमाई की। चीन (2.2 लाख करोड़) दूसरे पर है।
  • 30 करोड़ ऑनलाइन गेमर हैं देश में। 2022 तक 44 करोड़ हो जाएंगे।
  • 60% से ज्यादा ऑनलाइन गेमर 24 साल से कम उम्र के हैं अभी देश में।
  • 55 मिनट औसत टाइम स्पेंड करता है एक ऑनलाइन गेमर प्रतिदिन।
  • 800 एमबी डेटा खर्च कर देता है एक गेमर प्रतिदिन गेम खेलने के दौरान।


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
ऑनलाइन गेमिंग की वैल्यू 2024 तक 4 गुना तक बढ़ने की उम्मीद है। यह 2019 में 6200 थी जबकि 2024 तक 25 हजार 30 करोड़ तक हो सकती है। (प्रतीकात्मक)


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3gNHp5H

Labels:

गया में ऑनलाइन पिंडदान नहीं करवाएंगे पंडे, 700 बुकिंग रद्द; पंडे बोले- ऐसे तो हर कोई इसे बिजनेस बना लेगा https://ift.tt/2QKxSl6

2 सितंबर बुधवार से पितृपक्ष शुरू हो जाएगा। कोरोना महामारी के कारण मोक्षनगरी गया में पितृपक्ष का मेला स्थगित होने के बाद अब यहां ऑनलाइन पिंडदान भी नहीं होगा। यहां सिर्फ आम दिनों की तरह ही पिंडदान होंगे। वह भी इसलिए ताकि एक पिंड और एक मुंड की परंपरा कायम रहे।

ऐसे तो परंपरा ही खत्म हो जाएगी

गया के पंडों ने ई-पिंडदान का यह कहकर विरोध किया है कि अगर यह प्रथा शुरू हुई तो लोग तीर्थस्थलों में आना बंद कर देंगे। प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा खत्म हो जाएगी। कोई भी पुरोहित नहीं रह जाएंगे। हर कोई इसके नाम पर बिजनेस करने लगेगा। इसलिए हमने करीब 700 ऑनलाइन बुकिंग रद्द कर दी हैं। इस फैसले के समर्थन में दक्षिण भारत के पुरोहितों के अलावा गया इस्कॉन समेत 50 से अधिक संस्थाओं ने सभी ऑनलाइन बुकिंग रद्द कर दी हैं।

हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे

बिहार पर्यटन विभाग ने भी बुकिंग नहीं की है। इधर, विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य महेश गुपुत ने बताया कि ई-पिंडदान जैसी प्रथा को खत्म करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे। अखिल भारतीय पुरोहित महासभा ने भी ऑनलाइन पिंडदान का विरोध किया है।

कोरोना काल के चलते पितृपक्ष में ऐसा पहली बार होगा, जब फल्गु नदी के तट पर देश के अलग-अलग राज्यों की संस्कृतियों की झलक देखने को नहीं मिलेगी। इस्कॉन मंदिर के प्रबंधक जगदीश श्याम दास महाराज ने बताया कि उनके पास करीब 10 तीर्थयात्रियों ने ऑनलाइन पिंडदान के लिए संपर्क किया था, लेकिन पंडों के साफ इनकार करने के बाद सभी बुकिंग को रद्द कर दिया गया। इधर, दक्षिण भारत के तीर्थयात्रियों ने भी एक संस्था के जरिए ऑनलाइन पिंडदान की बुकिंग कराई थी। लेकिन पंडाें का कड़ा रुख देखते हुए इन्होंने भी अपने हाथ खींच लिए।

अपने हाथों पिंडदान से पितरों को मोक्ष मिलता है, गया आना ही होगा

गया के पुरोहितों का कहना है कि सनातन धर्म में ऑनलाइन पिंडदान का कोई महत्व नहीं है। यह शास्त्र के अनुकूल नहीं है। ऑनलाइन दर्शन पर जब हाईकोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया, तो ऑनलाइन पिंडदान कैसे हो सकता है? पिंडदान के लिए गया आना ही होगा, तभी पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी। अपने हाथों पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। ऑनलाइन के नाम पर उन्हें ठगा जा रहा है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
गया के पुरोहितों का कहना है कि सनातन धर्म में ऑनलाइन पिंडदान का कोई महत्व नहीं है। यह शास्त्र के अनुकूल नहीं है। (फाइल)


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2G6gzcf

Labels:

रक्षा मंत्रालय का बड़ा करार, 2580 करोड़ रु. की लागत से पिनाका रॉकेट लॉन्चर खरीदे जाएंगे, 6 रेजीमेंट तैयार होंगे https://ift.tt/2QDRveV

लद्दाख में चीन की घुसपैठ की साजिश के बीच सेना को मजबूत करने के लिए देश के रक्षा मंत्रालय ने बड़ा करार किया है। मंत्रालय ने छह सैन्य रेजीमेंट के लिए 2580 करोड़ रुपए की लागत से पिनाका रॉकेट लॉन्चर खरीदने को लेकर सोमवार को दो अग्रणी घरेलू रक्षा कंपनियों के साथ समझौता किया।

इसके लिए टाटा पावर कंपनी लिमिटेड (टीपीसीएल) और लार्सन एंड टूब्रो (एल एंड टी) के साथ अनुबंध पर दस्तखत किए हैं। जबकि रक्षा क्षेत्र के सरकारी उपक्रम भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल) को भी इस परियोजना का हिस्सा बनाया गया है।

चीन-पाकिस्तान सीमा पर तैनात किए जाएंगे

अफसरों ने बताया कि पिनाका रेजीमेंट को सैन्य बलों की संचालन तैयारियां बढ़ाने को चीन-पाकिस्तान के साथ लगती भारतीय सीमा पर तैनात किया जाएगा। बीईएमएल ऐसे वाहनों की आपूर्ति करेगी जिस पर रॉकेट लॉन्चर को रखा जाएगा। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि 6 पिनाका रेजीमेंट में ‘ऑटोमेटेड गन एमिंग एंड पोजिशनिंग सिस्टम’के साथ 114 लॉन्चर, 45 कमान पोस्ट भी होंगे। मिसाइल रेजीमेंट का संचालन 2024 तक शुरू करने की योजना है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
रक्षा मंत्रालय ने बताया कि 6 पिनाका रेजीमेंट में ‘ऑटोमेटेड गन एमिंग एंड पोजिशनिंग सिस्टम’के साथ 114 लांचर, 45 कमान पोस्ट भी होंगे। (फाइल)


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/32Fy3E0

Labels:

कई राज्यों में बैलेट से वोट देने के लिए आवेदन करने की आखिरी तारीख चुनाव के करीब तक, वोटों के रद्द होने का खतरा https://ift.tt/32IX7dh

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं के पास बैलेट से वोट करने का विकल्प है। देश के 50 में से 35 राज्यों में वोटर चुनाव के इतने करीब तक बैलेट के लिए आवेदन कर सकते हैं कि उसका समय से चुनाव अधिकारी के पास वापस पहुंचना संभव नहीं है।

इनके पास आवेदन करने और अधिकारी तक बैलेट पहुंचने में 12 या उससे कम दिन का समय रहेगा। पोस्टल सर्विस की तरफ से कहा गया है कि दोनों तरफ की डिलीवरी में 14 दिनों तक का समय लग सकता है। 2018 के मध्यावधि चुनाव के दौरान करीब एक लाख 14 हजार वोटों को देरी से आने की वजह से रद्द किया गया था।

हालांकि, अगर वोटर अंतिम समय का इंतजार नहीं करते हैं तो उनके पास बैलेट से वोट करने के लिए पर्याप्त समय होगा। नॉर्थ कैरोलिना में 4 सितंबर से बैलेट भेजने शुरुआत होगी। लोगों के पास पूरे 60 दिनों का समय रहेगा। अलबामा में 9 जबकि केंटकी में 15 सितंबर से प्रक्रिया शुरू होगी।

मिनेसोटा में एक दिन पहले तक बैलेट के लिए आवेदन कर सकते हैं

  • 16 राज्य में बैलेट के लिए आवेदन करने और उसे वापस पहुंचने के लिए 6 या कम दिनों का समय मिलेगा। जॉर्जिया, अलबामा, जैसे राज्य शामिल।
  • 19 राज्य में 12 दिनों तक का समय रहेगा। बैलेट के आवेदक तक पहुंचने में 6 दिन तक का समय लग सकता है। फ्लोरिडा, वर्जीनिया जैसे राज्य।
  • 6 राज्य में इस प्रक्रिया के लिए 14 या उससे ज्यादा दिनों का समय रहेगा। न्यू मैक्सिको, अलास्का, लोवा, न्यूयॉर्क, मैरिलैंड और रोड आईलैंड शामिल।
  • 9 राज्य के सभी रजिस्टर वोटरों को बिना आवेदन के बैलेट भेजे जाएंगे। इसमें नेवादा, कैलिफोर्निया, कोलोरैडो, वॉशिंगटन जैसे राज्य शामिल हैं।

चुनाव के दिन ही आते हैं सबसे ज्यादा बैलेट

चुनाव के दिन अधिकारियों के पास 20% तक बैलेट आते हैं। अगले दिन भी भारी मात्रा में बैलेट पहुंचने का सिलसिला जारी रहता है, लेकिन इन्हें रद्द करना पड़ता है। पूर्व चुनाव अधिकारी मिस पैट्रिक्स ने बताया कि लोकल चुनाव अधिकारियों के लिए बड़े तादाद में बैलेट को संभालना बड़ी चुनौती होती है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
इस बार चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बिडेन के बीच मुकाबला है। (फाइल)


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2QHfSrX

Labels:

रक्षा मंत्रालय का बड़ा करार, 2580 करोड़ रु. की लागत से पिनाका रॉकेट लॉन्चर खरीदे जाएंगे, 6 रेजीमेंट तैयार होंगे https://ift.tt/2DfBI2G

लद्दाख में चीन की घुसपैठ की साजिश के बीच सेना को मजबूत करने के लिए देश के रक्षा मंत्रालय ने बड़ा करार किया है। मंत्रालय ने छह सैन्य रेजीमेंट के लिए 2580 करोड़ रुपए की लागत से पिनाका रॉकेट लॉन्चर खरीदने को लेकर सोमवार को दो अग्रणी घरेलू रक्षा कंपनियों के साथ समझौता किया।

इसके लिए टाटा पावर कंपनी लिमिटेड (टीपीसीएल) और लार्सन एंड टूब्रो (एल एंड टी) के साथ अनुबंध पर दस्तखत किए हैं। जबकि रक्षा क्षेत्र के सरकारी उपक्रम भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल) को भी इस परियोजना का हिस्सा बनाया गया है।

चीन-पाकिस्तान सीमा पर तैनात किए जाएंगे

अफसरों ने बताया कि पिनाका रेजीमेंट को सैन्य बलों की संचालन तैयारियां बढ़ाने को चीन-पाकिस्तान के साथ लगती भारतीय सीमा पर तैनात किया जाएगा। बीईएमएल ऐसे वाहनों की आपूर्ति करेगी जिस पर रॉकेट लॉन्चर को रखा जाएगा। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि 6 पिनाका रेजीमेंट में ‘ऑटोमेटेड गन एमिंग एंड पोजिशनिंग सिस्टम’के साथ 114 लॉन्चर, 45 कमान पोस्ट भी होंगे। मिसाइल रेजीमेंट का संचालन 2024 तक शुरू करने की योजना है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
रक्षा मंत्रालय ने बताया कि 6 पिनाका रेजीमेंट में ‘ऑटोमेटेड गन एमिंग एंड पोजिशनिंग सिस्टम’के साथ 114 लांचर, 45 कमान पोस्ट भी होंगे। (फाइल)


from Dainik Bhaskar /national/news/major-agreement-of-ministry-of-defense-is-rs-2580-crore-will-buy-pinaka-rocket-launcher-at-a-cost-of-rs-127673606.html

Labels:

इंग्लिश टीम के पास लगातार छठी सीरीज जीत का मौका, पाकिस्तान मैच हारा तो आईसीसी रैंकिंग में 5वें नंबर पर आ जाएगा https://ift.tt/31JXXqN

इंग्लैंड और पाकिस्तान के बीच 3 टी-20 की सीरीज का आखिरी और निर्णायक मैच आज मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड मैदान पर खेला जाएगा। इंग्लिश टीम लगातार छठी टी-20 सीरीज जीतने का मौका है। यदि मैच बारिश के कारण रद्द भी होता है, तब भी इंग्लैंड सीरीज पर कब्जा कर लेगा, क्योंकि वह अभी 1-0 से आगे है। सीरीज का पहला मैच बारिश के कारण रद्द हो गया था, जबकि दूसरे मुकाबले में इंग्लैंड 5 विकेट से जीता था।

इंग्लैंड टीम इससे पहले जुलाई 2018 में टी-20 सीरीज हारा था। तब भारतीय टीम ने इंग्लैंड को उसी के घर में 2-1 से हराया था। वहीं, इंग्लिश टीम ने पिछली बार दक्षिण अफ्रीका को उसी के घर में 2-1 से हराया था। यह सीरीज इसी साल फरवरी में खेली गई थी।

आईसीसी रैंकिंग पर असर
यह मैच हारने या जीतने पर दोनों टीमों पर 2-2 पॉइंट्स का असर पड़ेगा। इंग्लैंड यह मैच जीतती है, तो पाकिस्तान को 2 पॉइंट्स का नुकसान होगा और वह चौथे से 5वें नंबर पर पहुंच जाएगी। जबकि इंग्लैंड 273 पॉइंट्स के साथ दूसरे नंबर पर बरकरार रहेगी। यदि पाकिस्तान यह मैच जीतता है, तो दोनों टीमें अपनी जगह बरकरार रहेंगी। फिलहाल, रैंकिंग में इंग्लैंड 271 पॉइंट के साथ दूसरे और पाकिस्तान 259 अंक के साथ चौथे नंबर पर है।

टी-20 रैंकिंग की टॉप-5 टीमें

रैंकिंग टीम पॉइंट
1 ऑस्ट्रेलिया 278
2 इंग्लैंड 271
3 इंडिया 266
4 पाकिस्तान 259
5 दक्षिण अफ्रीका 258

दोनों टीमों के बीच पहली बार 3 टी-20 की सीरीज
दोनों टीमें इंग्लैंड में पहली बार 3 टी-20 की सीरीज खेल रही हैं। इससे पहले 2010 में 2 टी-20 की सीरीज खेली गई थी, जिसमें मेजबान टीम ने पाकिस्तान को क्लीन स्वीप किया था।

हेड टु हेड
दोनों देशों के बीच अब तक 17 टी-20 हुए हैं। इसमें इंग्लैंड ने 11 और पाकिस्तान ने 4 मैच जीते हैं। एक मैच टाई और एक बेनतीजा रहा। वहीं, इंग्लैंड में भी पाकिस्तान का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है। पाकिस्तान ने यहां 8 टी-20 खेले हैं। इसमें से उसे 2 में ही जीत मिली है, जबकि 5 में शिकस्त झेलनी पड़ी है। एक मुकाबला बेनतीजा रहा।

पाकिस्तान के खिलाफ इंग्लैंड 7 में से 4 सीरीज जीता
इंग्लैंड-पाकिस्तान के बीच अब तक 7 सीरीज खेली गईं। इसमें इंग्लिश टीम ने 4 जीती और 2 हारीं, जबकि एक सीरीज ड्रॉ रही है। वहीं, अपने घर में इंग्लैंड का यह रिकॉर्ड बराबरी पर रहा है। पाकिस्तान ने मेजबान के खिलाफ 4 में से 2 सीरीज में जीतीं और 2 में हार झेलनी पड़ी।

पिच और मौसम रिपोर्ट: मैनचेस्टर में मैच के दौरान बादल छाए रहेंगे। तापमान 10 से 19 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। टॉस जीतने वाली टीम पहले गेंदबाजी करना पसंद करेगी। इस मैदान पर अब तक 9 टी-20 में 5 मैच पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती है।

  • ओल्ड ट्रैफर्ड मैदान पर कुल टी-20: 9
  • पहले बल्लेबाजी वाली टीम जीती: 1
  • पहले गेंदबाजी वाली टीम जीती: 5
  • पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 146
  • दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 120

इंग्लैंड-पाकिस्तान की संभावित प्लेइंग-11 टीमें
इंग्लैंड: टॉम बेंटन, जॉनी बेयरस्टो (विकेटकीपर), डेविड मलान, इयोन मोर्गन (कप्तान), सैम बिलिंग्स, मोइन अली, टॉम करन, लुइस ग्रेगरी, क्रिस जॉर्डन, आदिल राशिद, शकीब महमूद।
पाकिस्तान: बाबर आजम (कप्तान), फखर जमान, हैदर अली, मोहम्मद हफीज, शोएब मलिक, मोहम्मद रिजवान (विकेटकीपर), इफ्तिखार अहमद, शादाब खान, इमाद वसीम, मोहम्मद आमिर, शाहीन अफरीदी और हारिस राउफ।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
England vs Pakistan 3rd T20 Live | Eng Vs PAK Manchester Third T20 ICC Ranking Cricket Score Live Updates: Eoin Morgan VS Babar Azam


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3jwtOkV

Labels:

गया में ऑनलाइन पिंडदान नहीं करवाएंगे पंडे, 700 बुकिंग रद्द; पंडे बोले- ऐसे तो हर कोई इसे बिजनेस बना लेगा https://ift.tt/2GgT9RJ

2 सितंबर बुधवार से पितृपक्ष शुरू हो जाएगा। कोरोना महामारी के कारण मोक्षनगरी गया में पितृपक्ष का मेला स्थगित होने के बाद अब यहां ऑनलाइन पिंडदान भी नहीं होगा। यहां सिर्फ आम दिनों की तरह ही पिंडदान होंगे। वह भी इसलिए ताकि एक पिंड और एक मुंड की परंपरा कायम रहे।

ऐसे तो परंपरा ही खत्म हो जाएगी

गया के पंडों ने ई-पिंडदान का यह कहकर विरोध किया है कि अगर यह प्रथा शुरू हुई तो लोग तीर्थस्थलों में आना बंद कर देंगे। प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा खत्म हो जाएगी। कोई भी पुरोहित नहीं रह जाएंगे। हर कोई इसके नाम पर बिजनेस करने लगेगा। इसलिए हमने करीब 700 ऑनलाइन बुकिंग रद्द कर दी हैं। इस फैसले के समर्थन में दक्षिण भारत के पुरोहितों के अलावा गया इस्कॉन समेत 50 से अधिक संस्थाओं ने सभी ऑनलाइन बुकिंग रद्द कर दी हैं।

हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे

बिहार पर्यटन विभाग ने भी बुकिंग नहीं की है। इधर, विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य महेश गुपुत ने बताया कि ई-पिंडदान जैसी प्रथा को खत्म करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे। अखिल भारतीय पुरोहित महासभा ने भी ऑनलाइन पिंडदान का विरोध किया है।

कोरोना काल के चलते पितृपक्ष में ऐसा पहली बार होगा, जब फल्गु नदी के तट पर देश के अलग-अलग राज्यों की संस्कृतियों की झलक देखने को नहीं मिलेगी। इस्कॉन मंदिर के प्रबंधक जगदीश श्याम दास महाराज ने बताया कि उनके पास करीब 10 तीर्थयात्रियों ने ऑनलाइन पिंडदान के लिए संपर्क किया था, लेकिन पंडों के साफ इनकार करने के बाद सभी बुकिंग को रद्द कर दिया गया। इधर, दक्षिण भारत के तीर्थयात्रियों ने भी एक संस्था के जरिए ऑनलाइन पिंडदान की बुकिंग कराई थी। लेकिन पंडाें का कड़ा रुख देखते हुए इन्होंने भी अपने हाथ खींच लिए।

अपने हाथों पिंडदान से पितरों को मोक्ष मिलता है, गया आना ही होगा

गया के पुरोहितों का कहना है कि सनातन धर्म में ऑनलाइन पिंडदान का कोई महत्व नहीं है। यह शास्त्र के अनुकूल नहीं है। ऑनलाइन दर्शन पर जब हाईकोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया, तो ऑनलाइन पिंडदान कैसे हो सकता है? पिंडदान के लिए गया आना ही होगा, तभी पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी। अपने हाथों पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। ऑनलाइन के नाम पर उन्हें ठगा जा रहा है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
गया के पुरोहितों का कहना है कि सनातन धर्म में ऑनलाइन पिंडदान का कोई महत्व नहीं है। यह शास्त्र के अनुकूल नहीं है। (फाइल)


from Dainik Bhaskar /national/news/pandey-will-not-get-online-subscription-in-gaya-700-bookings-canceled-pandey-said-in-this-way-everyone-will-make-it-a-business-127673605.html

Labels:

बिजली डिमांड और वाहनों की बिक्री के आंकड़े हमारी अर्थव्यवस्था की ताकत बताते हैं, लेकिन मांग पहले जैसी हुई तो ये चुनौती होगी https://ift.tt/2QEOAlV

स्कंद विवेक धर/शरद पाण्डेय. पॉवर डिमांड और वाहनों की बिक्री के आंकड़े इस बात के प्रमाण हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में लगातार सुधार हो रहा है। अगर मांग अचानक पुराने स्तर पर पहुंची तो तुरंत आपूर्ति सुनिश्चित करना इंडस्ट्री के लिए बड़ी चुनौती होगी। जाने-माने बैंकर और उद्योग संगठन सीआईआई के अध्यक्ष उदय कोटक ने दैनिक भास्कर के साथ इंटरव्यू में ये बात कही। उन्होंने कहा कि रेलवे के फ्रेट ट्रैफिक और पीक पॉवर डिमांड के आंकड़ों से यह साफ दिख रहा है कि अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है।

एक और बड़ा सुधार ऑटोमोबइल सेक्टर में हो रहा है, जहां अगस्त महीने में पैसेंजर व्हीकल और दोपहिया गाड़ियों की बिक्री में वर्ष दर वर्ष आधार पर इजाफा होने की उम्मीद है। कुछ सेक्टरों ने वर्क फ्राॅम होम शुरू कर दिया है, लेकिन ज्यादातर सेक्टर में कर्मचारियों की उपस्थिति जरूरी है। 55 सेक्टर पर किए गए सीआईआई एसकॉन सर्वे के अनुसार जुलाई-सितंबर के बीच 55% उद्योगों के 50% से कम क्षमता के साथ काम करने का अनुमान है।

प्रस्तावित नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन इंडस्ट्री को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएगा और पीएलआई योजना से शुरुआती निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। ये सब कारण देश को नया मैन्युफैक्चरिंग हब बना सकते हैं। हालांकि, इसके लिए इंडस्ट्री और सरकार दोनों को कदम उठाने होंगे। भारत में पहले से ही बड़े पैमाने पर मैन्यूफैक्चरिंग होती है। हालांकि, मैन्युफैक्चरिंग स्केल कई गुना बढ़ाए जाने की संभावना अभी बनी हुई है। उन्होंने इंडस्ट्री से जुड़े इन सवालों के भी जवाब दिए...

कोरोना से क्या कोई सबक सीखने को मिला?

लॉकडाउन जरूरी था, हालांकि लोगाें की अजीविका का नुकसान हुआ है। इससे सीख मिली कि महत्वपूर्ण संसाधानों को इस तरह डिजाइन करना होगा, जिससे अजीविका सुरक्षित रहे और संक्रमण का खतरा कम हो।

क्या इंडस्ट्री ने रणनीति में कोई बदलाव किया है?

जी हां, इंडस्ट्री ने अपनी रणनीति बदल दी है। ज्यादातर कंपनियां फिजिकल ऑपरेशन से डिजिटल ऑपरेशन की ओर शिफ्ट हो रही हैं। तकनीकी आधारित निवेश जल्द ही एक ट्रेड के रूप में उभर सकता है।

उद्योग जगत की सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं?

इंडस्ट्री को सरकार से ऐसी पार्टनरशिप की उम्मीद है, जिसमें वह इन्वेस्टमेंट क्लाइमेट में सुधार के लिए इंडस्ट्री के सुझावों पर भरोसा कर सके। वहीं, इंडस्ट्रीज से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह सरकार की ओर से सुझावों को स्वीकारे और अमल के बाद निवेश करे।

चीन से कैसे प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं?

इसके लिए इनपुट कास्ट और जमीन की कीमत कम करनी होगी। श्रमिकों को स्किल ट्रेनिंग देकर क्वालिटी और उपलब्धता में सुधार की जरूरत होगी। चीन से आयात में माल पर आयात शुल्क बढ़ाना भी बेहतर रणनीति का हिस्सा होगा।

देश को आत्मनिर्भर बनने में कितना समय लगेगा?

सभी सेक्टरों में आत्मनिर्भर बनना जरूरी नहीं है, लेकिन हमे कुछ सेक्टरों जैसे फार्मास्यूटिकल्स, मेडिकल उपकरण और सुरक्षा मामलों पर फोकस करना चाहिए।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
इंडस्ट्रीज से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह सरकार की ओर से सुझावों को स्वीकारे और अमल के बाद निवेश करे। (उदय कोटक)


from Dainik Bhaskar /national/news/electricity-demand-and-vehicle-sales-figures-show-the-strength-of-our-economy-but-supply-will-be-a-challenge-if-demand-returns-to-old-levels-uday-kotak-127673602.html

Labels:

दवा की तय कीमत से ज्यादा वसूलने पर भी लाइसेंस रद्द करना मुश्किल, सिर्फ जुर्माना वसूल सकती हैं एजेंसियां https://ift.tt/3blCMyM

नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) की ओर से दवा की कीमत तय करने के बाद भी यदि दवा कंपनियां इससे ज्यादा कीमत वसूल करती है तो इन कंपनियों का लाइसेंस रद्द नहीं किया जा सकता। ड्रग्स कंसलटेटिव कमेटी ने कहा है कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे लाइसेंस रद्द किया जा सके।

डीटीएबी ने भी लाइसेंस रद्द करने से इनकार किया था

इससे पहले ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड (डीटीएबी) ने भी ऐसी कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने से इनकार कर दिया था। संसद की स्थाई समिति ने अपनी 54वीं रिपोर्ट में कहा है कि दवा कंपनी यदि तय कीमत से ज्यादा पैसा वसूल करती हैं, या अपनी मर्जी से दवा की कीमत तय करती है तो इनसे ब्याज सहित जुर्माना वसूला जाए। जुर्माना नहीं देने पर कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने पर विचार करें। स्वास्थ्य मंत्रालय से भी कहा है यदि जरुरत पड़े तो ड्रग्स प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स में जरुरी बदलाव करें।

मनमाने तरीके से कीमत बढ़ाने वाली कंपनियों से जुर्माना वसूला जाए

एनपीपीए का कहना है कि कीमत तय करने के बाद भी जिन कंपनियों ने दवा की कीमत बढ़ाई, ऐसी कंपनियों से जुर्माना वसूल करने के लिए 2083 नोटिस भेजे गए हैं। मार्च-2020 तक छह हजार 406 करोड़ रुपए से ज्यादा का जुर्माना किया गया है। लेकिन, सिर्फ 960 करोड़ रुपए की वसूली हो पाई है। वहीं चार हजार 33 करोड़ रुपए का मामला अदालत में चल रहा है। एनपीपीए के पास सिर्फ जुर्माना लगाने का अधिकार है।

एनपीपीए ऐसे तय करती है किसी दवा की कीमत

जब कोई कंपनी नई दवा लाती है, चाहे वही दवा किसी अन्य कंपनी की बाजार में हो तो उसकी कीमत एनपीपीए तय करती है। उस कंपोजिशन की दवा जो पहले से बाजार में है, पांच कंपनियों की औसत कीमत निकालकर नई कंपनी की दवा की कीमत तय की जाती है। कुछ कंपनियां एनपीपीए को बताती ही नहीं हैं, और अपनी मर्जी से कीमत तय कर देती हैं। इसके अलावा नेशनल लिस्ट ऑफ एसेंशिएल मेडिसिन (एनईएलएम) की कीमत भी एनपीपीए तय करती है। एनपीपीए का कहना है कि दवाओं की कीमत तय या कैपिंग करके हर वर्ष उपभोक्ताओं का 12 हजार 447 करोड़ रुपए बचाया जाता है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
जब कोई कंपनी नई दवा लाती है चाहे वही दवा किसी अन्य कंपनी की बाजार में हो तो उसकी कीमत एनपीपीए तय करती है। (प्रतीकात्मक)


from Dainik Bhaskar /national/news/it-is-difficult-to-cancel-the-license-even-after-charging-more-than-the-fixed-price-of-the-drug-only-agencies-can-recover-the-fine-127673601.html

Labels:

क्या आज से शुरू हो रही JEE के एग्जाम सेंटरों में बाढ़ का पानी भरा है? इस दावे से वायरल की जा रही फोटो का सच जानिए https://ift.tt/2QIarJq

क्या हो रहा वायरल : सोशल मीडिया पर कुछ फोटो वायरल हो रही हैं। फोटो में भारी बारिश के चलते सड़कों और घरों में हुआ जलभराव दिख रहा है। दावा किया जा रहा है कि ये फोटो नीट और जेईई परीक्षा केंद्रों की हैं। फोटो शेयर करते हुए सोशल मीडिया पर सरकार से सवाल पूछा जा रहा है कि जब परीक्षा केंद्रों की यह हालत है, तो फिर परीक्षा कैसे आयोजित होगी ?

देश भर के इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन के लिए होने वाली JEE मेन्स मंगलवार से शुरू हो रही है। यह परीक्षा 6 सितंबर तक होनी है। वहीं मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए होने वाली NEET 13 सितंबर को होगी।

कोरोना संक्रमण के बीच हो रही इन दो परीक्षाओं को लेकर जहां पैरेंट्स परेशान हैं। वहीं, छात्रों ने लगातार परीक्षा पोस्टपोन करने की सरकार से मांग की थी। हालांकि, इसी बीच सोशल मीडिया पर इन परीक्षाओं को लेकर कई भ्रामक दावे भी किए जा रहे हैं।

चार फोटो वायरल हो रही हैं

1. पहली फोटो

एग्जाम सेंटर में जलभराव के दावे के साथ ये तस्वीरें पिछले एक सप्ताह से सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही हैं।

2.दूसरी फोटो

इस फोटो को देखकर स्पष्ट हो रहा है कि ये कोरोना काल की नहीं है। कोई भी शख्स मास्क पहने नहीं दिख रहा। साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट संचालित होता दिख रहा है। जबकि इस समय अधिकतर राज्यों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट बंद है।

3. तीसरी फोटो

जेईई परीक्षा आयोजित कराए जाने के लगातार हो रहे विरोध के पीछे दो वजह हैं। पहली देश भर में तेजी से बढ़ रहे कोरोना के मामले। और दूसरी, देश के कई हिस्सों में बाढ़ के हालात।

4. चौथी फोटो

चूंकि इस समय बिहार, मध्यप्रदेश, असम और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य सच में बाढ़ का सामना कर रहे हैं। इसलिए एग्जाम सेंटरों में जलभराव के दावे को यूजर सच मानकर शेयर कर रहे हैं।

फोटो के साथ वायरल हो रहा मैसेज

This is the condition of examination centers and govt. wants to conduct exam's

हिंदी अनुवाद - परीक्षा केंद्रों की यह हालत है और सरकार परीक्षा आयोजित कराना चाहती है।

सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावे

## ##

फैक्ट चेक पड़ताल

नीट और जेईई के परीक्षा केंद्रों का बताकर चार फोटो वायरल हो रही हैं। हमने एक-एक करके हर फोटो की जांच शुरू की, तो बिल्कुल अलग ही सच्चाई निकल कर आई।

पहली फोटो का सच

गूगल पर फोटो को रिवर्स सर्च करने से कुछ मीडिया रिपोर्ट सामने आईं। जिनसे पता चलता है कि फोटो इलाहाबाद में हुई बारिश का है। फोटो में जलमग्न दिख रहा एमएल कॉन्वेंट स्कूल इलाहाबाद का ही है। न्यूज वेबसाइट पर उल्लेख नहीं है कि खबर किस समय की है। लेकिन, खबर में प्रयागराज का पुराना नाम ‘इलाहाबाद’ लिखा हुआ है।

उत्तरप्रदेश सरकार ने अक्टूबर, 2018 में इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज रखे जाने को मंजूरी दी थी। तबसे मीडिया रिपोर्ट्स में भी शहर का नाम प्रयागराज ही लिखा जाता है। स्पष्ट है कि वायरल हो रही पहली फोटो दो साल से भी ज्यादा पुरानी है और इसका नीट-जेईई परीक्षा से कोई संबंध नहीं है।

दूसरी फोटो का सच

न्यूज-18 की वेबसाइट पर तीन साल पुरानी एक फोटो स्टोरी है। स्टोरी में 29 अगस्त, 2017 की देश भर की बड़ी घटनाओं की तस्वीरें हैं। यहां हमें वो दूसरी फोटो मिली। जिसे नीट-जेईई परीक्षा केंद्रों का बताया जा रहा है। असल में ये फोटो मुंबई में आई बाढ़ की है।

तीसरी फोटो का सच

दैनिक जागरण की वेबसाइट पर 4 अगस्त, 2019 की खबर से पता चलता है कि ये फोटो पिछले साल हरिद्वार में आई बाढ़ का है।

चौथी फोटो का सच

चौथी फोेटो को रिवर्स सर्च करने पर भी दैनिक जागरण की ही एक खबर हमारे सामने आई। 9 जुलाई, 2019 की इस खबर में फोटो को पटना में हुई बारिश का बताया गया है।

निष्कर्ष: JEE-NEET के परीक्षा केंद्रों का बताकर शेयर की जा रही तस्वीरें यूपी, बिहार, उत्तराखंड और महाराष्ट्र में आई बाढ़ की हैं। पुरानी तस्वीरों के आधार पर भ्रामक दावा किया जा रहा है कि परीक्षा केंद्रों में बाढ़ का पानी भरा है।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Is the situation bad due to floods at NEET-JEE examination centers? Old pictures of floods in Uttarakhand, UP and Bihar go viral with false claims


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/34Qg54w

Labels:

व्यापार चलाने को कर्ज लिया था और लॉकडाउन लग गया, फाइनेंसर बाउंसर भेजने लगा, वो गाली देते और घर तबाह करने की धमकी देते थे https://ift.tt/2Dka2Ka

दोनों भाइयों में बड़ा प्यार था। आस-पड़ोस से लेकर नाते-रिश्तेदार भी उन्हें राम-लक्ष्मण कहते थे। जो बड़ा कहता, वही छोटा वाला करता। हर काम में साथ-साथ। सुबह, शाम और दोपहर बस काम-काम और काम। इसी काम ने मेरे दोनों लालों को हमसे छीन लिया। दोनों भाई एक साथ चले गए। ये भी नहीं सोचा कि उनके बाद हमारा क्या होगा? बच्चों का क्या होगा?’

इतना कहते-कहते 78 साल के अधेश्वर दास गुप्ता कांपने लगते हैं। बगल में खड़ी उनकी पत्नी सहारे के लिए हाथ आगे बढ़ाती हैं। उनकी पत्नी का नाम उषा है और उम्र 72 साल है। अधेश्वर दास के होंठ कंपकपा रहे हैं। वो कुछ बोल रहे हैं, लेकिन गले से आवाज नहीं निकल रही। उनकी सूनी आंखें सामने दीवार पर टिकी हैं। सुधबुध गंवा चुके पति को सहारा देकर बैठाने के बाद उषा कहती हैं, 'बच्चों को हमारी इतनी भी चिंता नहीं करनी चाहिए थी। वो डरते थे कि कहीं पैसा मांगने वाले लोग हमारे बूढ़े मां-बाप को ना कुछ बोल दें। इज्जत की फिक्र थी। कितने कष्ट में रहे होंगे हमारे लाल कि एक साथ फांसी लगा ली?'

दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में जिन दो सगे भाइयों ने एक साथ आत्महत्या की, उनके माता-पिता।

इतना कहकर वो आंचल से अपना चेहरा ढंक लेती हैं और भीतर से सिसकियों की आवाज आने लगती है। उन्हें ऐसा इसलिए करना पड़ रहा है, क्योंकि घर के भीतर खेल रहे दो छोटे-छोटे बच्चों को फिलहाल वो सब पता ना चले, जिसे सहने और समझने लायक उनकी उम्र नहीं है। वो आंसू रोकने की कोशिश करती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि रोने की आवाज से पास बैठे अधेश्वर दास की तबीयत और खराब हो जाएगी।

दिल्ली के चांदनी चौक में गली बेरी के आखिरी छोर पर अपने पुश्तैनी मकान में रह रहे इन दो बुजुर्गों की जिंदगी के सारे रंग 26 अगस्त की दोपहर को गायब हो गए। 25 अगस्त की रात तक ‘हैप्पी फैमिली’ के हर पैमाने पर खरा उतरने वाले इस परिवार को अगले दिन से दुःख, संताप और शोक के काले बादलों ने घेर लिया। कारण, इस परिवार के दो कमाऊ पूतों ने एक साथ फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

47 साल के अंकित और 42 साल के अर्पित गुप्ता पिछले दस साल से चांदनी चौक के बाजार में कृष्णा ज्वेलर्स नाम की दुकान चलाते थे। दोनों भाई अपने कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे थे। लॉकडाउन के बाद व्यापार में आई मंदी और बढ़ते कर्ज की वजह से इन दोनों भाइयों ने अपनी दुकान में ही फांसी लगा ली।

उस दिन को याद कर उषा गुप्ता एक बार फिर सिसकने लगती हैं। फिर हिम्मत जुटाने के बाद कहती हैं, ‘एक रात पहले हम सब ने साथ में खाना खाया था। वो अपने काम के बारे में ज्यादा बताते नहीं थे, फिर भी इतना तो मालूम था कि परेशान हैं। सुबह दुकान पर जाते हुए रोज की तरह दोनों भाइयों ने हम दोनों के पैर छुए थे। हमें क्या मालूम था कि वो आखिरी बार पैर छू रहे हैं।’

चांदनी चौक स्थित वह दुकान जहां दोनों भाइयों ने फांसी लगाकर जान दे दी। दोनों पर लाखों रुपए का कर्ज था।

उषा देवी की हिम्मत जवाब दे चुकी है और वो रोने लगती हैं। बगल में बैठे अधेश्वर दास गुप्ता किसी भी सवाल का जवाब देने की हालत में नहीं हैं। कुछ पूछने पर केवल इतना कहते हैं, ‘कुछ समझ नहीं आ रहा। क्या पूछ रहे हैं आप?’

कमरे में इन दोनों के अलावा उषा की भाभी मंजू गुप्ता भी मौजूद हैं, जो परिवार के दूसरे सदस्यों के वास्ते इन्हें चुप हो जाने के लिए कह रही हैं। अपने भांजों को याद करते हुए मंजू कहती हैं, ‘व्यापार चलाने के लिए बच्चों ने कर्ज ले रखा था। फिर लॉकडाउन लग गया। जिससे कर्ज लिया था वो दुकान पर बाउंसर भेजने लगे। गालियां देने लगे और घर-परिवार को भी तबाह करने की बात कहते थे। बच्चे चोर-लफंगे तो थे नहीं कि इस सब से निपट पाते। कुछ नहीं सूझा तो गलत काम कर बैठे।’

परिवार के मुताबिक, दोनों भाइयों ने एक प्राइवेट फाइनेंसर से कर्ज लिया था। लॉकडाउन की वजह से तीन महीने दुकान और फिर काम एकदम बंद हो गया। व्यापार ठप रहा, लेकिन कर्ज देने वाले फाइनेंसर ने अपने पैसों की वसूली के लिए उन्हें फोन पर धमकाना, फिर दुकान पर बाउंसर भेजना और गाली-गलौज करना शुरू कर दिया था। परिवार का तो यहां तक कहना है कि जन्माष्टमी से दो रोज पहले दुकान पर बाउंसरों ने खूब बदतमीजी की। दोनों को गंदी-गंदी गालियां दीं और पैसे न मिलने पर पूरे परिवार को तबाह करने की धमकी दी थी।

अंकित और अर्पित की आत्महत्या ने केवल एक परिवार को बेसहारा नहीं किया है, बल्कि इन दो भाइयों के इस कदम से सिस्टम एक बार फिर बेनकाब हुआ है। घटना के छह दिन बाद तक किसी भी राजनीतिक पार्टी का कोई भी नुमाइंदा इनका हालचाल लेने तक यहां नहीं पहुंचा है।

मां कहती हैं कि दुकान पर जाते समय रोज की तरह दोनों भाइयों ने हमारे पैर छू कर आशीर्वाद लिए थे। हमें क्या पता था कि वे आखिरी बार पैर छू रहे हैं।’

अविनाश अग्रवाल पिछले बीस साल से दिल्ली-6 में ही अपनी ज्वेलरी शॉप चलाते हैं। प्राइवेट फाइनेंसर से लोन की जरूरत क्यों पड़ी? इस सवाल पर कहते हैं, ‘जाहिर सी बात है। बैंक लोन देता नहीं। मैं व्यापारी हूं। मुझे कल ही कुछ माल उठाना है। माल एक करोड़ रुपए का है। मेरे पास चालीस लाख ही हैं। अब कैसे होगा? क्या एक दिन में सरकारी बैंक मुझे लोन दे देगा? चलो, एक हफ्ते में दे देगा? मेरा जवाब है, नहीं। आप चाहे तो चेक कर लो। अब ऐसे में मुझे पैसे के लिए तो प्राइवेट फाइनेंसर के पास ही जाना होगा। ज्यादा ब्याज भी देना होगा और इसके खतरे अलग हैं, लेकिन रास्ता क्या है?’

चांदनी चौक अपने व्यापार के लिए देशभर में जाना जाता है। यहां बड़ी संख्या में ज्वेलरी का कारोबार भी होता है। सीताराम बाजार में पिछले कई सालों से ज्वेलरी शॉप चला रहे कमल गुप्ता के मुताबिक, सोने का वायदा कारोबार और व्यपारियों में इसे लेकर बढ़ी दिलचस्पी मुख्य वजह है। वो कहते हैं, ‘इसमें कोई दो राय नहीं है कि लॉकडाउन ने कमर तोड़ दी है। सरकार केवल घोषणाएं कर रही है। आज भी हमें बिना गिरवी रखे बैंक एक लाख रुपए का लोन नहीं देता।

चार-पांच रोज भागना होता है सो अलग। लेकिन, इन दोनों के मामले में ‘वायदा बजार’ एक बड़ी वजह है। जो जानकारी मुझे है उसके मुताबिक, दोनों इस काम में लगे हुए थे। जो लोग ये काम करवाते हैं या आपको पैसे देते हैं, वो ही इस तरह से पैसों की वसूली भी करते हैं। इसे आप व्यापारियों का जुआ मानिए। खेलिए। जीते तो ठीक। हार गए तो सब सत्यानाश। पता नहीं सरकार क्यों जुआ खिलवा रही है?

वायदा बाजार मतलब व्यापार की वो जगह जहां वास्तव में न तो कोई दुकान होती है, न ही व्यापारी और न ही कोई ग्राहक। सब इंटरनेट पर होता है। कमल सहित इलाके के कई दूसरे व्यपारी इन दो भाइयों की आत्महत्या के पीछे ‘वायदा बाजार’ को एक मजबूत वजह मानते हैं। वर्ष 2003 से ही इलाके के व्यापारी इस काम में लगे हैं और जल्दी से जल्दी अच्छी कमाई का जरिया मानते हैं। ऐसा नहीं है कि अंकित और अर्पित ही ऐसे व्यापारी थे जो इस ‘बाजार’ में अपनी किस्मत आजमा रहे थे। चांदनी चौक में काम कर रहे ज्यादतर व्यापारी नियमित तौर से ‘वायदा बाजार’ में अपनी किस्मत आजमाते हैं। लेकिन, कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन और इस वजह से व्यापार में आई कमी ने ज्यादातर व्यापारियों के जीवन में अंधेरा फैला दिया है।

दरवाजे पर खड़ी दोनों भाइयों की मां। 47 साल के अंकित और 42 साल के अर्पित पिछले दस साल से चांदनी चौक के बाजार में कृष्णा ज्वेलर्स नाम की दुकान चलाते थे।

एक हजार सदस्यों वाला कूचा महाजनी ज्वेलरी एसोसिएशन चांदनी चौक का सबसे बड़ा ज्वेलर्स एसोसिएशन है। योगेश सिंघल इसके अध्यक्ष हैं और खुद एक बड़ी ज्वेलरी शॉप के मालिक हैं। वो कहते हैं, ‘मेरे पास कई व्यापारियों के फोन आते हैं। कोई लाखों के कर्ज में है तो कोई करोड़ों के। आपको भरोसा नहीं होगा, लेकिन हर व्यापारी की नींद हराम है। जिन दो भाइयों ने आत्महत्या की, उनकी भी यही स्थिति थी। गद्दे पर काम कम हुआ तो मुनाफे के लालच में व्यापारियों ने ‘वायदा बाजार’ का रुख किया। उन पर कर्ज बढ़े और बढ़ते चले गए। कर्ज चुकाने की उनकी क्षमता कम हुई। नोटबंदी से किसी तरह संभले तो लॉकडाउन ने जान निकाल दी।’

अंकित गुप्ता और अर्पित गुप्ता की आत्महत्या के बाद इलाके के व्यापारियों में एक दहशत का माहौल है और ये किसी एक परिवार या एक व्यापारी की बात नहीं है। बहुत से ऐसे व्यापारी हैं, जो गले तक कर्ज में डूबे हुए हैं। वो भी ऐसे वक्त में जब कारोबार पिछले छह महीने से पूरी तरह से ठप है और अगले छह महीने भी ठप ही रहने वाला है। यही वजह है कि कूचा महाजनी ज्वेलर्स एसोसिएशन सितंबर के पहले हफ्ते में अपने सभी सदस्यों के साथ ऑनलाइन मीटिंग करने वाला है और सरकार के सामने व्यापारियों के मन की असुरक्षा को सामने रखने वाला है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Two brothers commit suicide inside Chandni Chowk's jewellery shop


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3jqrKuK

Labels:

देश में सबसे ज्यादा दलित और मुसलमान कैदी यूपी में और आदिवासी मध्य प्रदेश की जेलों में बंद हैं, कॉमन जेलों में भीड़, लेकिन महिला जेलें खाली https://ift.tt/3gPphs6

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने साल 2019 के लिए जेल संबंधित एक रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक, देशभर में करीब 4.72 लाख कैदी हैं। इनमें 4.53 लाख पुरुष और 19 हजार 81 महिला कैदी हैं। जिसमें 70 फीसदी तो अंडर ट्रायल हैं, 30 फीसदी ही दोषी हैं। सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में एक लाख कैदी हैं। मध्य प्रदेश में 44 हजार 603 और बिहार में 39 हजार 814 कैदी हैं। 2019 में 18 लाख लोगों को कैद किया गया, जिसमें से 3 लाख लोगों को अभी भी जमानत नहीं मिल सकी है।

रिपोर्ट के मुताबिक, दलित, मुस्लिम और आदिवासी कैदियों की संख्या आबादी में उनके अनुपात से कहीं ज्यादा है। 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश में अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी 16 फीसदी है, जबकि एनसीआरबी के आंकड़ों की मानें तो 21.7% दोषी दलित जेलों में बंद हैं।

अगर आदिवासियों की बात करें, तो दोषी कैदी 13.6% और 10.5% कैदी अंडर ट्रायल हैं। जबकि, इनकी कुल आबादी देश में 8.6% है। ओबीसी से ताल्लुक रखने वाले 34.9% दोषी जेलों में कैद हैं, जबकि इनकी आबादी 40% के आसपास है। जबकि, बाकी दूसरी जातियों का आंकड़ा 29.6% है।

मुस्लिम वर्ग की बात करें तो 16.6 फीसदी दोषी कैदी जेलों में बंद हैं और 18.7 फीसदी अंडर ट्रायल हैं। जबकि, देश में इनकी आबादी 14.2 फीसदी है। वहीं हिंदुओं की बात करें तो करीब 74 फीसदी दोषी जेलों में कैद हैं।

सोशल एक्टिविस्ट और आईआईएम अहमदाबाद की एसोसिएट प्रोफेसर रितिका खेड़ा कहती हैं कि जेलों में दलित, आदिवासी और मुसलमानों की संख्या ज्यादा होने से हम यह नहीं कह सकते कि इन समुदायों में क्राइम ज्यादा है। बल्कि, इससे यह जान पड़ता है कि देश में "रूल आफ लॉ" काफी कमजोर है।

रीतिका के मुताबिक, अंडर ट्रायल में इनकी संख्या ज्यादा इसलिए भी है कि इनके पास जमानत करवाने के लिए वकील नहीं है या पैसा नहीं है। उनकी गरीबी उन्हें जेल में रखती है। जबकि, ऊंची जाति और वर्ग के लोग, दोषी पाए जाने पर भी आसानी से जमानत ले लेते हैं। हाल ही में विकास दुबे, जिसका एनकाउंटर हो गया और जेसिका लाल के हत्यारे, मनु शर्मा को भी रिहा कर दिया गया।

वो कहती हैं कि कई बार आदिवासियों और मुसलमानों को झूठे केसों में भी फसाया जाता है। जैसे कि छत्तीसगढ़ में सोनी सॉरी को गिरफ्तार किया गया और उनके साथ जेल में बदसलूकी की गई। इस तरह के और भी कई उदाहरण हैं।

देश में सबसे ज्यादा दलित कैदी यूपी में हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश और पंजाब के जेलों में बंद हैं। वहीं, सबसे ज्यादा आदिवासी कैदी मध्य प्रदेश में हैं और सबसे ज्यादा मुसलमान यूपी की जेलों में बंद हैं।

पांच साल पहले यानी 2015 की बात करें तो उस समय भी दलित और आदिवासी दोषी कैदियों की संख्या लगभग इतनी ही थी। 2015 में 21% दोषी दलित, 13.7% दोषी आदिवासी और 15.8% दोषी मुसलमान जेल में थे। रिपोर्ट के मुताबिक, एससी/एसटी एक्ट के तहत 2019 देशभर में 628 लोग जेल में हैं। सबसे ज्यादा यूपी में 141, मध्यप्रदेश में 111और बिहार में 79 लोग जेल में हैं।

18.3 फीसदी कैदी ही महिला जेलों में हैं

देश में कुल 19 हजार 81 महिला कैदी हैं, इनमें से सिर्फ 18.3 फीसदी यानी 3 हजार 652 ही महिलाओं के लिए बने जेलों में कैद हैं। जबकि, 16 हजार 261 महिलाएं देश की दूसरे जेलों में कैद हैं। देश में कुल महिला जेलों (वुमन जेल) की संख्या 31 है। राजस्थान में सबसे ज्यादा 7 महिला जेल हैं।

2014 से 2019 के बीच महिलाओं के लिए बने जेलों की क्षमता 34.6% बढ़ी है, लेकिन इस दौरान कैदियों की संख्या सिर्फ 21.7% ही बढ़ी है। 2014 में महिलाओं के लिए बने जेलों में 62% महिलाएं कैद थीं, जबकि 2019 में आंकड़ा घटकर 56.1% हो गया।

उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ ये चार ऐसे राज्य हैं, जहां गैर-महिला जेलों में महिला कैदियों की संख्या क्षमता से ज्यादा है। लेकिन, राजस्थान में 7 महिला जेल होने के बाद भी तीन हिस्सा खाली ही है। यही स्थिति तमिलनाडु (5 महिला जेल) और बाकी राज्यों की भी है।

महिला जेल खाली और कॉमन जेलों में ओवरक्राउडिंग क्यों?

अब सवाल उठता है कि महिला जेलों में महिलाओं की संख्या कम क्यों है? जबकि गैर-महिला जेलों में जरूरत से ज्यादा भीड़ है। इस बारे में ओवरक्राउडिंग और जेलों में कैदियों की बढ़ती संख्या को लेकर जेल सुधारक के रूप में काम करने वालीं और तिनका- तिनका की संस्थापक वर्तिका नंदा कहती हैं कि देश में कई राज्यों में महिला जेल नहीं हैं। ऐसे में अगर वहां अपराध दर्ज किया जाता है, तो कैदी वही रखे जाते हैं इसलिए महिला जेलों में इनकी संख्या कम है और कॉमन जेलों में ज्यादा। दूसरी वजह है कि देश में महिला अपराधियों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन उसके मुकाबले महिला जेलों के बढ़ने की रफ्तार धीमी है। इतना ही नहीं उन जेलों में महिला स्टाफ की भी कमी है।

वर्तिका कहती हैं कि एक और सबसे बड़ी वजह ये है कि देश में जहां महिला जेलों की संख्या ज्यादा होनी चाहिए, वहां कम है। कई जेल ऐसी भी हैं, जो बहुत दूर हैं, वहां कनेक्टिविटी नहीं है। इसलिए हमें जेल बनाते समय यह ध्यान रखने की जरूरत है कि वह किस जगह पर हो, कहां अपराध ज्यादा हैं, कहां बेहतर कनेक्टिविटी है। सही जगह पर जेल नहीं होने की वजह से ही देश के कई महिला जेलों में कैदियों की संख्या काफी कम है।

एक साल में 3.32 फीसदी बढ़े कैदी

इतना ही नहीं, जेलों में भीड़ भी बढ़ी है, यानी क्षमता से अधिक कैदी बढ़े हैं। 2015 में 100 लोगों के रहने की जगह पर 114 कैदी थे, जबकि 2019 में आंकड़ा 118 हो गया। दिल्ली में यह आंकड़ा 175 है। अगर विदेशी कैदियों की बात करें तो भारत में कुल 5 हजार 608 विदेशी कैदी जेल में हैं। इनमें 4,776 पुरुष और 832 महिला हैं। इसमें से 2,171 दोषी हैं और 2,979 अंडर ट्रायल हैं जबकि 40 बंदी हैं। 2018 के मुकाबले देश में कैदियों की संख्या 3.32 फीसदी बढ़ी है।

वर्तिका का कहना है कि हमारे देश में केसों का निपटरा वक्त पर नहीं होता है, अंडर ट्रायल का मामला जल्द नहीं सुलझता है। कई ऐसे लोग होते हैं, जिनके अपराध की सजा 2 महीने या 6 महीने होनी चाहिए थी, लेकिन उनका लंबा समय जेल में गुजर जाता है। चिंता की बात तो ये है कि इसके लिए कोई जिम्मेदार ही नहीं होता। इसके साथ ही कई लोग ऐसे होते हैं, जो हैबिचुअल ऑफेंडर होते हैं, वो बार- बार अपराध करते हैं और जेल में आते हैं। इससे भी कैदियों की संख्या बढ़ती है।

सबसे ज्यादा गुजरात के जेलों से फरार हुए कैदी

देशभर के जेलों से 2019 में कुल 468 कैदी फरार हुए, जिसमें से 329 ज्यूडिशियल कस्टडी से और 139 पुलिस कस्टडी से फरार हुए। इनमें से 231 को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। गुजरात से सबसे ज्यादा 175 कैदी फरार हुए। हालांकि, सिक्किम, मेघालय, गोवा और जम्मू कश्मीर सहित 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से एक भी कैदी फरार नहीं हुए हैं।

2019 में 116 कैदियों ने सुसाइड किया

2019 में जेल में कुल 1 हजार 775 कैदियों की मौत हुई है। इनमें से 1,544 की प्राकृतिक, 165 की अप्राकृतिक और 66 की मौत के कारण पता नहीं चल पाया। रिपोर्ट के मुताबिक, जिन लोगों की प्राकृतिक मौत हुई है, उनमें 1,466 कैदी बीमार थे, 78 कैदियों की मौत ज्यादा उम्र की वजह से भी हुई है। अप्राकृतिक मौत में सबसे ज्यादा मामला सुसाइड का है। 2019 में 116 कैदियों ने सुसाइड किया है। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा कैदियों की मौत हुई है।

वर्तिका नंदा कहती हैं कि ये एक सोशियोलजिकल और लीगल इश्यू है, जिसपर कलेक्टिवली ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जब से जेल बनी हैं, तब से इस तरह की घटनाएं हो रही हैं, एक तरह से ये जेलों के स्वभाव का हिस्सा हो गया है, जो ठीक नहीं है। जेल चाहती है कि जो यहां आए, वो जिंदा रहे, लेकिन कैसे जिंदा रहे इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपराध नहीं किया था या उनका ट्रायल जल्दी हो जाना चाहिए था, लेकिन उन्हें लम्बा वक्त जेल में गुजरना पड़ता है। इससे भी वे डिप्रेशन में आ जाते हैं और ऐसे कदम उठाते हैं। इसलिए ये जरूरी है कि जेल सुधार को लेकर काम किया जाए, सुविधाएं दी जाएं, लाइब्रेरी की व्यवस्था की जाए।

2019 में कुल 121 कैदियों को मौत की सजा दी गई। इनमें यूपी में 27, मध्य प्रदेश में 17 और कर्नाटक में 14 कैदियों को मौत की सजा दी गई। जबकि, 77 हजार 158 को आजीवन कारावास की सजा और 20 हजार 763 को 10 साल से ज्यादा की सजा दी गई।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 7 कैदी पर एक जेल स्टाफ है। सबसे ज्यादा झारखंड में 19 कैदी पर एक स्टाफ है। वहीं यूपी में 17, असम में 11, छत्तीसगढ़ में 10, बिहार में 8, मणिपुर-अरुणाचल में 1-1 कैदी पर एक स्टाफ है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Indian jails remained overcrowded, Higher share of Dalits, tribals, Muslims in prison than numbers outside


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3hZ2hZj

Labels: