Friday, 31 July 2020

एक दिन में रिकॉर्ड 57486 मरीज बढ़े, देश में अब तक 16.97 लाख केस; दिल्ली में आज से सीरो सर्वे का दूसरा फेज शुरू होगा https://ift.tt/2DrIBNX

देश में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा शनिवार सुबह 16 लाख 97 हजार 54 पर पहुंच गया। पिछले 24 घंटे में देश में 57 हजार 486 मरीज बढ़े। यह एक दिन का सबसे ज्यादा आंकड़ा है। इससे पहले गुरुवार को सबसे ज्यादा 54 हजार 750 मरीज मिले थे। शुक्रवार को सबसे ज्यादा 10,376 संक्रमित आंध्र प्रदेश में मिले। महाराष्ट्र में 10,320 मरीज सामने आए। ये आंकड़े covid19india.org के मुताबिक हैं।

उधर, दिल्ली में सीरो-सर्वे का दूसरा चरण आज से शुरू हो रहा है। यह सर्वे 1 से 5 अगस्त तक चलेगा। इस दौरान उत्तर और उत्तर-पूर्वी दिल्ली समेत चार जिलों में 15 हजार सैंपल्स इकट्ठे किए जाएंगे। राज्य सरकार ने इससे पहले सीरो सर्वे 27 जून से 10 जुलाई तक किया था। इस दौरान 20 हजार सैंपल लिए गए थे।

दरअसल, सीरो सर्वे के तहत यह पता लगाया जाता है कि किन लोगों में एंटीबॉडीज डेवलप हो रही हैं। इसकी दर क्या है? कहने का मतलब- अगर किसी व्यक्ति को कोरोना होता है। उसके अंदर कोई लक्षण नहीं उभरता है, तो ऐसे व्यक्ति के शरीर में 5-7 दिन के अंदर अपने आप एंटीबॉडी बनना शुरू हो जाती हैं, जो वायरस को शरीर में पनपने नहीं देती हैं। इसे ही हर्ड इम्युनिटी कहते हैं।

5 राज्यों का हाल
मध्य प्रदेश: राज्य के किसी भी जिले में लॉकडाउन लगाने का फैसला अब कलेक्टर नहीं कर सकेंगे। उन्हें जिले में लॉकडाउन करने से पहले सरकार से मंजूरी लेनी होगी। इसके साथ ही राज्य में 1 से 14 अगस्त तक किल कोरोना अभियान पार्ट-2 शुरू किया जाएगा। इसके लिए नारा दिया है- संकल्प की चेन जोड़ो, कोरोना की चेन तोड़ो।

राजस्थान: राज्य में लगातार 7वें दिन एक हजार से ज्यादा नए रोगी सामने आए। शुक्रवार को 1147 रोगी मिले। जयपुर और बीकानेर में 4-4, अजमेर में 3 और बाड़मेर-नागौर में एक-एक व्यक्ति ने कोरोना की वजह से दम तोड़ दिया। अलवर में कलेक्ट्रेट स्थित कोरोना कंट्रोल रूम के ही चार कर्मचारी पॉजिटिव निकले। राजगढ़ में एसीजेएम कोर्ट के 8 कर्मी रोगी मिले। स्थानीय प्रशासन का दावा है कि अलवर में 185 नए रोगी आए, जबकि राज्य स्तरीय सूची में 90 ही हैं।

महाराष्ट्र: शुक्रवार को राज्य में 10,320 नए मामले सामने आए हैं। वहीं संक्रमण के चलते 265 लोगों की मौत हो गई। महाराष्‍ट्र में कोरोना संक्रमण के कुल मामले बढ़कर 4,22,118 हो गए हैं। इसमें 2,56,158 मरीज ठीक होकर डिस्चार्ज हो चुके हैं, जबक‍ि राज्‍य में अब तक 14,994 लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य में अब 1,50,662 एक्टिव मामले हैं।

बिहार: राज्य में शुक्रवार को रिकॉर्ड 2986 मरीज मिले। इससे संक्रमितों का आंकड़ा 50 हजार पार कर गया। उधर, राज्य में कोरोना संक्रमण की दर में लगातार इजाफा हो रहा है। यह 9.3% हो गई है, जो राष्ट्रीय संक्रमण की दर 8.70% से ज्यादा है। राज्य में अब तक 5 लाख 48 हजार 172 सैंपल की जांच हुई है। जुलाई की अगर बात करें तो इस महीने 3 लाख 27 हजार 282 सैंपल की जांच हुई है और 40999 केस सामने आए। यानि हर 8 सैंपल में से एक संक्रमित मिल रहा है। अच्छी बात यह है कि एक हफ्ते पहले राज्य में जहां रोज 10 हजार सैंपल की जांच हो रही थी, वह अब बढ़कर 22 हजार पहुंच गई है।


उत्तर प्रदेश: राज्य में अब तक 23 लाख 25 हजार 428 टेस्ट किए जा चुके हैं। 5 सैंपल के 3358 पूल लगाए गए, जिसमें से 531 में पॉजिटिविटी पाई गई और 10 सैंपल के 302 पूल लगाए गए, जिसमें से 30 में पॉजिटिविटी पाई गई। उन्होंने बताया कि अब तक सर्विलांस से 40 हजार 823 इलाकों में 1 करोड़ 47 लाख 08 हजार 791 घरों का सर्विलांस किया गया है। इनमें 7 करोड़ 44 लाख 89 हजार 777 लोग रहते हैं।



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यह फोटो दिल्ली के राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल की है। यहां शुक्रवार को एक हजार सैंपल लिए गए। राजधानी में रोजाना 20 हजार से ज्यादा कोरोना टेस्ट किए जा रहे हैं।


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हैमिल्टन अकेले 1090 करोड़ रुपए कमा लेते हैं, जबकि आईपीएल की 8 फ्रेंचाइजी की कुल कमाई 500 करोड़ https://ift.tt/39MwA1U

खेल की दुनिया में प्रोफेशनल स्पोर्ट्स में एमेच्योर स्पोर्ट्स से कहीं ज्यादा पैसा है। इस कमाई के जरिए अलग-अलग हैं जैसे कि जर्सी-किट स्पॉन्सरशिप से होने वाली कमाई। टीवी विज्ञापनों से कमाई। स्टेडियम नेमिंग राइट्स की कमाई। मैदान में विज्ञापनों से होने वाली कमाई। टिकट विंडो से होने वाली कमाई आदि। इसमें जर्सी और किट स्पॉन्सरशिप से होने वाली कमाई की हिस्सेदारी कहीं ज्यादा है।

फॉर्मूला-1 रेसर लुईस हैमिल्टन अपने रेस सूट से 1090 करोड़ रुपए तक कमा लेते हैं। जबकि आईपीएल की सभी 8 टीमें मिलकर जर्सी या किट स्पॉन्सर से सिर्फ 500 करोड़ रुपए तक कमा पाती हैं। ऐसे ही चार खेल में जर्सी और किट स्पॉन्सर से होने वाली कमाई की तुलना...

हैमिल्टन 12 कंपनियों को एंडोर्स करते हैं
6 बार के फॉर्मूला-1 वर्ल्ड चैंपियन मर्सडीज के लुईस हैमिल्टन के रेस सूट पर 12 स्पॉन्सर्स के विज्ञापन हैं। इसमें क्लोदिंग ब्रांड से लेकर एनर्जी ड्रिंक्स तक के ब्रांड हैं। इससे ब्रिटिश रेसर और जर्मन ऑटोमोटिव कंपनी मर्सडीज को करीब 1090 करोड़ रु. की कमाई हुई है।

  • एफ-1 को 15 साल में स्पॉन्सर्स से करीब 2 लाख 25 हजार करोड़ रु. मिले हैं। 1066 कंपनियों ने 6 हजार डील्स की हैं।
  • मर्सडीज ने पेट्रोनेस से 562 करोड़ में टाइटल स्पॉन्सरशिप की है। फरारी की फिलिप माॅरिस से 1322 करोड़ की स्पॉन्सरशिप सबसे महंगी है।
  • पेट्रोनेस ने एक दशक में सबसे ज्यादा 5500 करोड़ खर्च किए हैं। इसमें एडवरटाइजिंग से लेकर टाइटल स्पॉन्सरशिप तक है।

फुटबॉल: यूनाइटेड जर्सी से 1330 करोड़ रु. कमाता है
इंग्लिश क्लब मैनचेस्टर यूनाइटेड किट और जर्सी स्पॉन्सर्स से 1330 करोड़ रु. की कमाई करता है। क्लब किट स्पॉन्सर एडिडास से हर साल 730 करोड़ रुपए कमाता है। उसे जर्सी स्पॉन्सर शेवरले से करीब 600 करोड़ रुपए की कमाई होती है।

टॉप-10 क्लबों ने इस साल 28 हजार करोड़ की कमाई की है। यह कुल स्पॉन्सरशिप का एक तिहाई है। फुटबॉल क्लबों को किट सप्लाई करने के मामले में एडिडास पहले और नाइकी दूसरे नंबर पर है। एडिडास की औसत वैल्यू 4285 करोड़, नाइकी की 2714 करोड़ है।

क्रिकेट: मुंबई को 100 करोड़ के रेवेन्यू का अनुमान
आईपीएल फ्रेंचाइजी को 500 करोड़ रु. के रेवेन्यू का अनुमान है। मुंबई इंडियंस को स्पॉन्सरशिप से 100 करोड़ की कमाई होगी। मुंबई का किट स्पॉन्सर परफॉरमैक्स है जबकि सैमसंग के साथ 75 करोड़ की लीड स्पॉन्सरशिप है।

चेन्नई सुपर किंग्स (सीएसके) 90-95 करोड़ की कमाई कर दूसरे पर रहेगी। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) और कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) को 60 करोड़ की उम्मीद। जियो 8 टीमों को स्पॉन्सर करता है। उसकी डील करीब 150 करोड़ रु. की है। किंगफिशर किंग्स इलेवन पंजाब, मुंबई इंडियंस, हैदराबाद और आरसीबी का स्पॉन्सर है।

बास्केटबॉल: गोल्डन स्टेट की कमाई 450 करोड़ रुपए
अमेरिकन बास्केटबॉल लीग एनबीए की टीम गोल्डन स्टेट वॉरियर्स की जर्सी स्पॉन्सर कंपनी रेकुटेन से 450 करोड़ रुपए की डील है। यह एनबीए में जर्सी स्पॉन्सरशिप के मामले में सबसे बड़ी डील है। न्यूयॉर्क निक्स की स्पॉन्सर स्क्वैयरस्पेस है, जिससे 315 करोड़ रुपए की डील है। जर्सी स्पॉन्सरशिप की शुरुआत 2017-18 सीजन से हुई। उससे पहले, खिलाड़ियों की जर्सी पर सिर्फ किट स्पॉन्सर का लोगो होता था। सभी टीमों की किट नाइकी की है। नाइकी ने एनबीए से 7500 करोड़ की डील की थी।



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लुईस हैमिल्टन के रेस सूट पर क्लोदिंग ब्रांड से लेकर एनर्जी ड्रिंक्स तक के ब्रांड हैं। इससे ब्रिटिश रेसर और जर्मन ऑटोमोटिव कंपनी मर्सडीज को करीब 1090 करोड़ रु. की कमाई हुई है। -फाइल फोटो


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अमेरिका के अलास्का में दो प्लेन टकराए, असेंबली मेंबर समेत सात लोगों की मौत https://ift.tt/30h4bOa

अमेरिका में एक हवाई दुर्घटना में सात लोगों की मौत हो गई। हादसा अलास्का के सोलडोन्टा शहर से कुछ किलोमीटर दूर हुआ। जानकारी के मुताबिक, दो छोटे विमान हवा में टकरा गए। मारे गए लोगों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के एक स्टेट असेंबली मेंबर गैरी नोप भी शामिल हैं।

सिंगल इंजिन वाले प्लेन थे
न्यूयॉर्क टाइम्स ने स्थानीय अधिकारियों के हवाले से बताया- दोनों एयरक्राफ्ट सिंगल इंजिन वाले थे। इनमें से एक हैविललैंड डीएचसी-2 बीवर और दूसरा पाइपर-पी12 था। दोनों ही विमानों ने सोलडोन्टा एयरपोर्ट से उड़ान भरी। एंकोरेज शहर से करीब 150 मील दूर हवा में यह आपस में टकरा गए। जानकारी के मुताबिक, फिलहाल अधिकारी मामले की जांच कर रहे हैं।

किसकी गलती?
अब तक ये साफ नहीं हो सका है कि हादसा किसकी गलती की वजह से हुआ। इसकी वजह ये है कि दुर्घटना एयरपोर्ट से काफी दूर हुई। उस वक्त मौसम बिल्कुल साफ था। दोनों विमानों के उड़ान भरने के वक्त में भी काफी अंतर था। घटना के वक्त विजिबिलिटी भी 10 किलोमीटर से ज्यादा थी। इस क्षेत्र में पायलट भी एक ही फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करते हैं। लिहाजा, ये मानना भी मुश्किल है कि दोनों पायलटों की एटीसी से बातचीत नहीं हुई होगी। बहरहाल, मामले की जांच की जा रही है। पुलिस के मुताबिक, वो शुरुआती जांच के बाद ही बयान जारी करेगी।



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अलास्का में हुई विमान दुर्घटना में मारे गए लोगों में गैरी नोप भी शामिल हैं। नोपी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी स्टेट असेंबली मेंबर थे। (फाइल)


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ऑनलाइन एजुकेशन से जुड़ा एक नया चैप्टर जोड़ा गया, पिछले साल जारी किए गए ड्राफ्ट में यह चैप्टर नहीं था https://ift.tt/316JaoD

केंद्र सरकार ने बुधवार को नई शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी। देश की शिक्षा नीति में 34 सालों बाद यह बदलाव हुआ है। इसमें प्राइमरी एजुकेशन से लेकर रिसर्च लेवल तक के बदलाव शामिल हैं।

अब तक यही समझा जा रहा है कि 2020 में आई नई शिक्षा नीति पूरी तरह 2019 में आए ड्राफ्ट के आधार पर ही तैयार की गई है। लेकिन, यह पूरी तरह सही नहीं है। नई शिक्षा नीति पर कोविड-19 महामारी का भी असर हुआ है। ऑनलाइन एजुकेशन से जुड़ा एक नया चैप्टर साल 2020 में ही जोड़ा गया है।

2019 के ड्राफ्ट में कुल 23 चैप्टर थे। जबकि बुधवार को जारी की गई नई शिक्षा नीति में 24 चैप्टर हैं। यह 24वां चैप्टर है Online and Digital Education: Ensuring Equitable Use of Technology यानी सभी के लिए तकनीक का उपयोग सुनिश्चित करना।

क्या है इस नए चैप्टर में?

सरकार की तरफ से जारी किए गए नई शिक्षा नीति के आधिकारिक दस्तावेज में इस चैप्टर को लेकर लिखा है: महामारी से उपजी परिस्थितियों से यह पता चला कि शिक्षा के पारंपरिक तरीकों के अलावा हमें नए विकल्पों की भी जरूरत है, इसलिए इसे जोड़ा गया।

नई शिक्षा नीति की ड्राफ्ट कमेटी के सदस्य आर.एस कुरील कहते हैं: यह चैप्टर ड्राफ्ट में नहीं था। सरकार ने बाद में महामारी से उपजी परिस्थितियों को देखते हुए इसे जोड़ा है। हालांकि, यह बदलाव वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए तो सही है ही। इसके भविष्य में भी अच्छे परिणाम सामने आएंगे।

देश में डिजिटल डिवाइड है

ऑनलाइन एजुकेशन पर जोर दिए जाने के साथ पॉलिसी में यह भी कहा गया है कि ऑनलाइन एजुकेशन का हम पूरी तरह फायदा तब तक नहीं उठा सकते, जब तक देश में डिजिटल डिवाइड है। डिजिटल डिवाइड से सीधा मतलब है अधिकतर लोगों के पास ऑनलाइन एजुकेशन के लिए संसाधन उपलब्ध न होना।

सात चरणों में तैयार होगा ऑनलाइन एजुकेशन का ढांचा

  • ऑनलाइन एजुकेशन से जुड़े इस नए चैप्टर में सात चरणों के बारे में बताया गया है। जिनके तहत देश में ऑनलाइन एजुकेशन का ढांचा तैयार किया जाएगा।
  • NETF, CIET, NIOS, IGNOU, IITs, NITs के जरिए ऑनलाइन एजुकेशन के पायलट प्रोजेक्ट शुरू किए जाएंगे।
  • देश में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाएगा।
  • SWAYAM, DIKSHA जैसे ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स को पहले से ज्यादा यूजर फ्रेंडली बनाया जाएगा।
  • डिजिटल कंटेंट का एक बड़ा भंडार तैयार किया जाएगा। जिसमें नए कोर्स-वर्क, लर्निंग गेम्स आदि डेवलप किए जाएंगे।
  • डिजिटल डिवाइड को देखते हुए टेलीविजन, रेडियो और कम्युनिटी रेडियो के माध्यम से भी ई-लर्निंग कंटेंट उपलब्ध कराया जाएगा।
  • DIKSHA, SWAYAM और SWAYAMPRABHA जैसे ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स के जरिए वर्चुअल लैब तैयार होंगे। जिनसे ऑनलाइन ही स्टूडेंट्स प्रैक्टिकल और एक्सपेरिमेंट्स भी कर सकें।
  • टीचर्स को सिखाया जाएगा कि वे किस एक ऑनलाइन एजुकेशन के लिए कंटेंट क्रिएटर बन सकते हैं।

एक्सपर्ट की राय



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Impact of Covid-19 on National education policy, new chapter related to online education added, this chapter was not in the draft released last year.


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कभी बड़े भाई से आगे था छोटा भाई; लेकिन 15 साल में मुकेश की नेटवर्थ 9 गुना बढ़ी, अनिल की जीरो हुई https://ift.tt/33g2zWP

13 मार्च 2006। ये वो दिन था जब अनिल अंबानी की टेलीकॉम कंपनी में बड़ा मर्जर हुआ था। इस दिन बोर्ड मीटिंग में तय हुआ कि रिलायंस इन्फोकॉम का रिलायंस कम्युनिकेशन वेंचर लिमिटेड में मर्जर होगा। इससे रिलायंस कम्युनिकेशन वेंचर लिमिटेड के शेयर प्राइस 67% बढ़ गए। इसका नतीजा ये हुआ कि इस दिन अनिल अंबानी की नेटवर्थ 45 हजार करोड़ रुपए हो गई थी। जबकि, उस दिन बड़े भाई मुकेश की नेटवर्थ 37 हजार 825 करोड़ रुपए थी।

ये वो समय था जब नेटवर्थ के मामले में छोटा भाई, बड़े भाई से ऊपर आ गया था। जबकि, एक हफ्ते पहले ही फोर्ब्स की लिस्ट आई थी, जिसमें मुकेश अंबानी, अनिल से आगे थे। फोर्ब्स की लिस्ट के मुताबिक, मार्च 2006 में मुकेश की नेटवर्थ 8.5 अरब डॉलर और अनिल की नेटवर्थ 5.7 अरब डॉलर थी।

दोनों भाइयों की बात इसलिए, क्योंकि आजकल चर्चा में दोनों ही भाई हैं। कुछ दिन पहले ही फ्रांस से राफेल फाइटर जेट आए हैं। इसे फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन ने तैयार किए हैं। राफेल डील में अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस ऑफसेट पार्टनर है। और बड़े भाई मुकेश दुनिया के 5वें सबसे अमीर शख्स बन गए हैं।

जब दोनों भाई अलग हुए, तब दोनों की नेटवर्थ 7 अरब डॉलर थी
मुकेश अंबानी 1981 और अनिल अंबानी 1983 में रिलायंस से जुड़े थे। जुलाई 2002 में धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद मुकेश अंबानी रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन बने। अनिल मैनेजिंग डायरेक्टर बने। नवंबर 2004 में पहली बार मुकेश और अनिल का झगड़ा सामने आया। जून 2005 में दोनों के बीच बंटवारा हुआ।

मार्च 2005 में मुकेश और अनिल की ज्वाइंट नेटवर्थ 7 अरब डॉलर थी। उससे पहले 2004 में दोनों की कंबाइंड नेटवर्थ 6 अरब डॉलर थी। जबकि, 2003 में महज 2.8 अरब डॉलर। मतलब कारोबार संभालने के दो साल में ही मुकेश और अनिल की नेटवर्थ ढाई गुना बढ़ गई थी।

मुकेश और अनिल की नेटवर्थ उस समय बढ़ी थी, जब लगातार दो साल से धीरूभाई अंबानी की नेटवर्थ में गिरावट आ रही थी। 2000 में धीरूभाई की नेटवर्थ 6.6 अरब डॉलर थी, जो 2002 में गिरकर 2.9 अरब डॉलर हो गई थी।

बंटवारे के बाद से 15 साल में मुकेश की नेटवर्थ 9 गुना बढ़ी
जून 2005 में दोनों के बीच बंटवारा तो हो गया। लेकिन, किस भाई को कौनसी कंपनी मिलेगी? इसका बंटवारा 2006 तक हो पाया था। बंटवारे के बाद मुकेश अंबानी के हिस्से में पेट्रोकेमिकल के कारोबार रिलायंस इंडस्ट्रीज, इंडियन पेट्रो केमिकल्स कॉर्प लिमिटेड, रिलायंस पेट्रोलियम, रिलायंस इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड जैसी कंपनियां आईं।

छोटे भाई ने अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप बनाया। इसमें आरकॉम, रिलायंस कैपिटल, रिलायंस एनर्जी, रिलायंस नेचुरल रिसोर्सेस जैसी कंपनियां थीं।

रिलायंस ग्रुप का बंटवारा होने से पहले तक मार्च 2005 में मुकेश और अनिल की ज्वाइंट नेटवर्थ 7 अरब डॉलर थी। उसके बाद 2006 से लेकर 2008 तक तो दोनों भाइयों की नेटवर्थ में ज्यादा अंतर नहीं था।

लेकिन, 2009 में आर्थिक मंदी आई। दुनियाभर के अमीरों की संपत्ति में गिरावट दर्ज की गई। मुकेश और अनिल अंबानी की संपत्ति में भी बड़ा फर्क यहीं से आना शुरू हुआ।

एक तरफ अरबपतियों की लिस्ट में अनिल की रैंकिंग गिरते गई और मुकेश की रैंकिंग बढ़ती गई। 2008 में मुकेश 5वें और अनिल 6वें नंबर पर थे। लेकिन, अब अनिल अंबानी तो अरबपतियों की लिस्ट से बाहर ही हो गए हैं।

2006 से लेकर अब तक मुकेश अंबानी की नेटवर्थ में 9 गुना से ज्यादा का इजाफा हुआ है। जबकि, फरवरी 2020 में ब्रिटेन की एक कोर्ट में अनिल कह चुके हैं कि उनकी नेटवर्थ जीरो है और वो दिवालिया हो चुके हैं।

मुकेश अंबानी टेलीकॉम में आए, तो सबसे बड़ा नुकसान छोटे भाई को हुआ
2002 का समय था। उस समय दोनों भाई साथ थे। धीरूभाई अंबानी भी थे। उस समय रिलायंस ग्रुप ने रिलायंस इन्फोकॉम से टेलीकॉम इंडस्ट्री में कदम रखा था। उस समय फोन पर बात करना महंगा होता था। उस समय रिलायंस ने सस्ते दामों में ग्राहकों को वॉइस कॉलिंग की सुविधा दी। कंपनी ने स्लोगन दिया ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’।

लेकिन, धीरूभाई की मौत के बाद रिलायंस इन्फोकॉम छोटे भाई अनिल के हिस्से में आ गई। ये वो समय था जब मोबाइल फोन का मार्केट तेजी से बढ़ रहा था। लेकिन, दोनों भाइयों के बीच एक समझौता हुआ था और वो समझौता ये था कि मुकेश ऐसा कोई बिजनेस शुरू नहीं करेंगे, जिससे अनिल को नुकसान हो। 2010 में ये समझौता भी खत्म हो गया।

2010 में ही रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 4,800 करोड़ रुपए में इन्फोटेल ब्रॉडबैंड सर्विस लिमिटेड (आईबीएसएल) की 95% हिस्सेदारी खरीद ली। आईबीएसएल देश की पहली और इकलौती कंपनी थी, जिसने देश के सभी 22 जोन में 4जी ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम फैला दिया था। बाद में इसी का नाम ही ‘रिलायंस जियो’ पड़ा।

5 सितंबर 2016 को मुकेश अंबानी ने रिलायंस जियो लॉन्च कर दी। शुरुआत में कंपनी ने 6 महीने तक 4जी डेटा और वॉइस कॉलिंग फ्री रखी। इसका नतीजा ये हुआ कि रिलायंस जियो तेजी से बढ़ने लगी।

टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी ट्राई के आंकड़ों के मुताबिक, सितंबर 2016 में रिलायंस जियो के पास 1.5 करोड़ से ज्यादा ग्राहक आ गए थे। इस समय तक छोटे भाई अनिल की रिलायंस इन्फोकॉम कंपनी का मार्केट शेयर भी 8% से ज्यादा था।

जैसे-जैसे समय बीतता गया, प्राइस वॉर की वजह से अनिल की कंपनी के ग्राहक घटते गए और मुकेश की कंपनी के ग्राहक बढ़ते गए। अप्रैल 2020 तक जियो के पास 38 करोड़ से ज्यादा ग्राहक हैं। जबकि, रिलायंस के ग्राहकों की संख्या अब 18 हजार भी नहीं रह गई है।

मुकेश आगे बढ़ते रहे, अनिल कर्जदार बनते गए
जब दुनिया में आर्थिक मंदी आई, तो दुनिया भर के अमीरों का अच्छा-खासा नुकसान हुआ। मुकेश और अनिल की संपत्ति में भी भारी कमी आ गई। इस सबसे बड़े भाई मुकेश तो निकल गए, लेकिन छोटे भाई अनिल फंसते ही चले गए। एक तरफ बड़ा भाई का कारोबार बढ़ रहा था, तो दूसरी तरफ छोटे भाई पर कर्ज।

आज हालत ये है कि अनिल अंबानी दिवालिया होने की कगार पर हैं। तो दूसरी ओर मुकेश अंबानी अपनी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज को कर्जमुक्त कर चुके हैं। 31 मार्च 2020 तक रिलायंस इंडस्ट्रीज पर 1.61 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज था, लेकिन अब उनकी कंपनी पर कोई कर्ज नहीं है। जबकि, अनिल अंबानी पर 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है।

एक ओर रिलायंस इंडस्ट्रीज की कंपनियों की मार्केट कैप 12 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गई है। दूसरी ओर अनिल अंबानी की कंपनियों की मार्केट कैप 2 हजार करोड़ रुपए से भी कम हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी 2020 तक अनिल की कंपनियों की मार्केट कैप 1,645.65 करोड़ रुपए थी।

अमीरों के पास कितनी दौलत?:मुकेश अंबानी की नेटवर्थ देश के 9 छोटे राज्यों की जीडीपी के बराबर; दुनिया के टॉप-3 अरबपतियों की संपत्ति भारत के बजट से भी ज्यादा

आरआईएल का रुतबा:आधे पाकिस्तान के बराबर है रिलायंस की नेटवर्थ, अगर एक देश होता रिलायंस तो 134 देशों से ऊपर होती उसकी जीडीपी



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Mukesh Ambani Vs Anil Ambani Net Worth 2020 | Know Who Was Richer RIL Chairman Vs Anil Reliance Group


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कोरोनाकाल में सिर्फ भारत में बिजनेस करने वाली जियो को ढाई हजार करोड़ का फायदा; 18 देश में ऑपरेट करने वाली एयरटेल को 16 हजार करोड़ का घाटा https://ift.tt/3k2GOzI

कोरोना के चलते भारत में तीन महीने का लॉकडाउन रहा। मार्च के आखिरी हफ्ते से लेकर जून तक लोगों की डिजिटल डिपेंडेंसी और भी बढ़ गई। लोगों ने इंटरनेट के जरिए घर से ही सारा काम किया और इससे टाइम पास भी किया। इस बात की चर्चा भी थी कि लॉकडाउन के चलते, इंटरनेट यूज बढ़ेगा और टेलीकॉम कंपनियों का मुनाफा भी बढ़ेगा।

हाल ही में रिलायंस जियो और एयरटेल ने वित्त वर्ष 2020-2021 के पहले तिमाही के लिए अपने आंकड़े जारी किए। जियो को लॉकडाउन में नए यूजर भी मिले और हर यूजर से उसकी कमाई भी बढ़ी। इसके साथ ही उसका फायदा भी बढ़ा।

लेकिन, एयरटेल के साथ ऐसा नहीं हुआ। लॉकडाउन में बीती इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में उसके यूजर घट गए। एयरटेल का बिजनेस 18 देशों में है उसके बाद भी उसका ये हाल है। वहीं, जियो सिर्फ भारत में बिजनेस करके भी एयरटेल के 18 देश के यूजर बेस के लगभग बराबरी पर आ खड़ी हुई है। एयरटेल को हर यूजर से उसकी कमाई में थोड़ा इजाफा तो हुआ लेकिन, उसका घाटा दो गुने से ज्यादा बढ़ गया।

अप्रैल-जून तिमाही इन दोनों कंपनियों की परफॉर्मेंस कैसी रही? दोनों कंपनियों के यूजर्स का डेटा कंजम्पशन कितना बढ़ा? दोनों के यूजर्स कितने बढ़े या घटे? लॉकडाउन में लोगों की कॉलिंग कितनी बढ़ी? इस रिपोर्ट में हम इन सभी सवालों का जवाब देंगे।



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Jio Vs Airtel; Mukesh Ambani Reliance Jio Profit Vs Airtel Revenue 2020 | Who is the Biggest? How Many Reliance Jio Airtel User (Subscriber Base) In India


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बच्चों के पास मोबाइल नहीं थे तो शुरू किया ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल, अकेले बडगाम जिले में 8 हजार बच्चे पढ़ रहे हैं https://ift.tt/3fmqDd8

कोरोना के चलते देश भर में पिछले चार महीनों से स्कूल बंद हैं। देश में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल रहा है, यही वजह है कि अनलॉक-3 में भी स्कूलों को खोलने की इजाजत नहीं दी गई है। इन सबके बीच कश्मीर की वादियों में बच्चे अब स्कूल के बंद कमरों की बजाय नीले आसमान के नीचे पहाड़ों के बीच ओपन पढ़ाई कर रहे हैं।

तस्लीमा बशीर अब ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल में पढ़ाई कर रही हैं। फोटो: आबिद बट

कश्मीर के बडगाम जिले के पहाड़ी क्षेत्र में रहने वालीं तस्लीमा बशीर आठवीं क्लास में पढ़ती हैं। तस्लीमा को पढ़ाई करना पसंद है। स्कूल ने वर्चुअल क्लासेज के जरिए पढ़ाई भी कराई, लेकिन ना तो तस्लीमा के घर में मोबाइल है और न ही उनके घर तक मोबाइल नेटवर्क की पहुंच है। ऐसे में तस्लीमा खुद ही घर पर बैठकर जो मन आया वो पढ़ लेती थीं।

इसके बाद जब 1 जून से ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल की शुरूआत हुई तो यहां आने के बाद तस्लीमा के चेहरे पर एक अलग ही रौनक नजर आई। बडगाम जिले के दूधपथरी की वादियों में तस्लीमा की तरह कई बच्चे ओपन एयर स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। तस्लीमा कहती हैं कि इस तरह खुली वादियों के बीच पढ़ना ज्यादा अच्छा लगता है।

मैं घर पर ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाती थी, क्योंकि मुझे कई और काम भी करने पड़ते थे। तस्लीमा की ही तरह और बच्चों को भी इस तरह के कम्युनिटी स्कूल में पढ़ना अच्छा लग रहा है। इन बच्चों के पेरेंट्स रोजाना पहाड़ की चढ़ाई पार करके इस कम्युनिटी स्कूल तक छोड़ने आते हैं।

जो बच्चे मोबाइल, इंटरनेट के अभाव में वर्चुअल क्लासेज तक नहीं पहुंच सके, वो अब कम्युनिटी स्कूल में आकर पढ़ाई कर रहे हैं। फोटो: आबिद बट

मोबाइल फोन के अभाव में कई बच्चे अटेंड नहीं कर सके वर्चुअल क्लासेज

बडगाम जिले की चीफ एजुकेशन ऑफिसर फातिमा बानो बताती हैं कि जिले में 1,271 स्कूल हैं, इनमें 702 प्राइमरी, 422 मिडिल, 101 हाईस्कूल और 46 हायर सेकेंडरी स्कूल हैं। यहां कुल 75 हजार छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। इन बच्चों को पढ़ाने के लिए बडगाम जिले में 6,122 टीचर्स हैं। फातिमा पिछले 35 सालों से एजुकेशन सेक्टर से जुड़ी हैं और 31 अगस्त को उनका रिटायरमेंट हैं।

कुछ बच्चे मोबाइल, इंटरनेट के अभाव में वर्चुअल क्लासेज तक नहीं पहुंच सके

फातिमा बताती हैं कि काेरोना के दौरान जब हमने वर्चुअल क्लासेज की शुरुआत की तो 75 हजार बच्चों में से 61 हजार जूम व अन्य माध्यम से हमसे जुड़े। बाकी बच्चों के नहीं जुड़ने का कारण पूछा तो पता चला कि कुछ बच्चे अपने परिवारों के साथ वापस अपने प्रदेश चले गए जोकि यहां काम करने के लिए आते थे। जबकि, कुछ बच्चे मोबाइल, इंटरनेट के अभाव में वर्चुअल क्लासेज तक नहीं पहुंच सके।

उनके पेरेंट्स ने बताया कि वो इतने समर्थ नहीं हैं कि मोबाइल खरीद सकें। फातिमा बताती हैं कि उन बच्चों को कैसे जोड़ा जाए इसे लेकर मैंने कमिश्नर सेक्रेट्री और डायरेक्टर एजुकेशन से बात की और फिर ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल का विचार आया। जिले में 13 जोन हैं और हर जोन में 4 से 5 ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल संचालित हो रहे हैं। जहां 8 हजार से अधिक बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।

क्लास शुरू होने से पहले उन्हें फेस मास्क-हैंड सैनिटाइजर दिया जाता है। फोटो: आबिद बट

क्लास शुरू होने से पहले बच्चों को देते हैं फेस मास्क, हैंड सैनिटाइजर

बडगाम के जोनल एजुकेशन ऑफिसर मोहम्मद रमजान बताते हैं कि खुली हवा में पढ़ाई के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन किया जाता है। क्लास शुरू होने से पहले उन्हें फेस मास्क और हैंड सैनिटाइजर दिया जाता है। सभी बच्चों को आठ समूहों में उनकी उम्र के अनुसार बिठाया जाता है।

वहीं टीचर मंजूर अहमद कहते हैं कि हमें घर पर बैठकर वेतन लेना अच्छा नहीं लगता था। स्कूल की इमारत की तुलना में इन वादियों में पढ़ाने में ज्यादा अच्छा लगता है। कश्मीर में कोरोनावायरस महामारी के पहले से ही स्कूली शिक्षा प्रभावित हुई थी। पिछले साल सरकार ने यहां अनुच्छेद-370 हटाकर जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर यहां कर्फ्यू लगा दिया था। कर्फ्यू हटने के कुछ महीनों बाद ही कोरोना के चलते लॉकडाउन लग गया।

तेज धूप और बारिश में बच्चों को परेशान होना पड़ता है। फोटो: आबिद बट

इन कम्युनिटी स्कूल में नहीं हैं धूप, बारिश से बचने के इंतजाम

तंगधार में संचालित होने वाले इस कम्युनिटी स्कूल में 8वीं क्लास में पढ़ने वाले एक छात्र ने बताया कि यहां बाकी सब तो ठीक है लेकिन तेज धूप और बारिश में पढ़ाई नहीं हो पाती है, अगर अधिकारी यहां टेंट की व्यवस्था करा दें तो हम ज्यादा अच्छे से पढ़ाई कर सकेंगे।

वहीं, 7वीं क्लास में पढ़ने वाली अनीशा जौहर बताती हैं कि पहले टीचर्स घरों में आकर पढ़ाते थे, घर में इतनी जगह नहीं होती थी कि हम पढ़ाई कर सकें लेकिन कम्युनिटी स्कूल में पढ़ना अच्छा लगता है। वर्तमान में यह कम्युनिटी क्लासेज विंटर जोन में आने वाले जिलों में चल रही हैं, चूंकि पूरे प्रदेश में 2जी इंटरनेट ही चल रहा है, ऐसे में जूम क्लासेज में भी काफी दिक्कतें आती हैं।

ऐसे में कश्मीर संभाग में कम्युनिटी स्कूल की सफलता के बाद जम्मू संभाग में इसे शुरू किया गया है।

कश्मीर के सुदूरवर्ती गांवों में इस तरह संचालित हो रहे हैं ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल। फोटो: आबिद बट


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कश्मीर के बडगाम जिले के पहाड़ी क्षेत्र में इस तरह ओपन एयर कम्युनिटी स्कूल संचालित किए जा रहे हैं। फोटो: आबिद बट


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सतेंद्र दास कहते हैं, जब बाबरी विध्वंस हुआ तो मैं वहीं था, सुबह 11 बज रहे थे, हम रामलला को उठाकर अलग चले गए, ताकि वो सुरक्षित रहें https://ift.tt/3gjrqNo

राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी हैं सत्येंद्र दास। कहते हैं "सबसे बड़ी बात है कि राममंदिर बन रहा है। 28 साल से मैं पुजारी के रूप में रामलला की सेवा कर रहा हूं। मन मे एक टीस थी कि रामलला टेंट में हैं, लेकिन ठाकुर जी की कृपा से सब सही हो गया। अब हमारे आराध्य श्री राम टाट से निकल कर ठाट में आ गए हैं।

चूंकि, अब ट्रस्ट बन गया है मंदिर बनने के बाद मैं आगे पुजारी रहूंगा या नहीं, यह नहीं कह सकता हूं। क्योंकि बीच मे मेरे रिश्ते विहिप से खराब हो गए थे। साल 2000 में अशोक सिंघल समेत कई बड़े विहिप के नेता जबरदस्ती जन्मस्थान में घुस आए थे। उनके पीछे मीडिया भी थी।

तत्कालीन डीएम भगवती प्रसाद मामले को रफा-दफा करना चाह रहे थे। लेकिन, मीडिया में खबर चलने के बाद यह संभव नही हो सका। बाद में पत्रकारों ने हमसे भी पूछा तो हमने भी नाम बता दिया। इसके बाद विहिप वाले हमसे नाराज हो गए।

हालांकि, हमने संबंध बनाए रखा, लेकिन सही बात यह है कि अब वो बात नहीं है। 80 साल उम्र हो चुकी है। रामलला की सेवा में 28 साल बिता दिए हैं। अगर मौका मिलेगा तो बाकी जिंदगी भी उन्हीं की सेवा में बिताना चाहता हूं।’

अभी तक हम सभी उन्हें एक पुजारी के रूप में जानते आए हैं। आज हम आपको उनकी पिछली जिंदगी में ले चलते हैं।

1958 में घर छोड़ चले आए थे अयोध्या
सत्येंद्र दास बताते हैं कि मैं संत कबीरनगर का रहने वाला हूं। अपने पिताजी के साथ बचपन से अयोध्या आता रहता था। उस समय आसपास का माहौल भी बहुत धार्मिक रहता था। पिता जी अभिराम दास जी के पास आया करते थे। अभिराम दास वही हैं जिन्होंने राम जन्मभूमि में 1949 में गर्भगृह में मूर्तियां रखीं थी। उनसे भी मैं प्रभावित था।

साथ ही पढ़ने की इच्छा थी, तो 8 फरवरी 1958 को मैं अयोध्या आ गया। मेरे परिवार में हम दो भाई और एक बहन थी। जब पिताजी को पता चला कि मैं संन्यासी बनना चाहता हूं तो उन्हें बड़ी खुशी हुई। उन्होंने कहा कि एक भाई घर पर रहेगा और एक भगवान की सेवा में जाएगा। फिर मैं चला आया। अब परिवार में भाई है। कभी-कभी आता-जाता रहता है। त्योहार, उत्सव, पूजा इत्यादि पर मैं भी घर जाता रहता हूं। बहन की मृत्यु हो चुकी है।

राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास दो भाई हैं। उनका एक भाई घर पर है। उनकी बहन का निधन हो चुका है।

1976 में मिली सहायक अध्यापक की नौकरी
सत्येंद्र दास बताते हैं कि यहां मैंने संस्कृत विद्यालय से आचार्य 1975 में पास किया। 1976 में फिर अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में व्याकरण विभाग में सहायक अध्यापक की नौकरी मिल गई। उस समय 75 रुपए तनख्वाह थी। इस दौरान मैं राम जन्मभूमि भी आया जाया करता था। श्री अभिराम दास हमारे गुरु थे। इस दौरान मैं कथा, पूजा इत्यादि भी करने जाया करता था। नवरात्रों में जन्मभूमि में कलश स्थापना का कार्य भी करता था। तब कभी नहीं सोचा था कि कभी यहां का मुख्य पुजारी बनूंगा।

1 मार्च 1992 को को मिला रामलला की सेवा का मौका
सत्येंद्र दास कहते हैं कि सब कुछ जीवन में सामान्य चल रहा था। 1992 में रामलला के पुजारी लालदास थे। उस समय रिसीवर की जिम्मेदारी रिटायर जज पर हुआ करती थी। उस समय जेपी सिंह बतौर रिसीवर नियुक्त थे। उनकी फरवरी 1992 में मौत हो गई तो राम जन्मभूमि की व्यवस्था का जिम्मा जिला प्रशासन को दिया गया। तब पुजारी लालदास को हटाने की बात हुई।

उस समय मैं तत्कालीन भाजपा सांसद विनय कटियार विहिप के नेताओं और कई संत जो विहिप नेताओं के संपर्क में थे, उनसे मेरा घनिष्ठ संबंध था। सबने मेरे नाम का निर्णय किया। तत्कालीन विहिप अध्यक्ष अशोक सिंघल की भी सहमति मिल चुकी थी। जिला प्रशासन को सबने अवगत कराया और इस तरह 1 मार्च 1992 को मेरी नियुक्ति हो गई। मुझे अधिकार दिया गया कि मैं अपने 4 सहायक पुजारी भी रख सकता हूं। तब मैंने 4 सहायक पुजारियों को रखा।

सत्येंद्र दास 28 साल से रामलला की सेवा कर रहे हैं।

मंदिर से स्कूल और स्कूल से मंदिर यही दिनचर्या थी
सत्येंद्र दास बताते हैं कि उस समय स्कूल और मंदिर में सामंजस्य बिठाना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन सहायक पुजारियों की वजह से सब आसान हो गया था। सुबह तड़के से 10 बजे तक मंदिर में रहता, फिर 10 बजे से 4 बजे तक स्कूल में रहता। फिर 4 बजे के बाद से शाम तक मंदिर में। इस तरह पूजा का काम भी चल रहा था और स्कूल का भी चल रहा था।

100 रुपए पारिश्रमिक बतौर पुजारी मिलता था
सत्येंद्र दास बताते हैं कि मैं चूंकि सहायता प्राप्त स्कूल में पढ़ाता था, तो मुझे वहां से भी तनख्वाह मिलती थी। ऐसे में मंदिर में मुझे बतौर पुजारी सिर्फ 100 रुपए पारिश्रमिक मिलता था। जब 30 जून 2007 को मैं अध्यापक के पद से रिटायर हुआ, तो मुझे फिर यहां 13 हजार रुपए तनख्वाह मिलने लगी। मेरे सहायक पुजारियों को अभी 8000 रुपए तनख्वाह मिलती है।

28 साल से रामलला टेंट में विराजमान थे। अब उनका मंदिर बनने जा रहा है।

जब बाबरी विध्वंस हुआ तो मैं रामलला को बचाने में लगा था
सत्येंद्र दास कहते हैं कि जब बाबरी विध्वंस हुआ तो मैं वहीं था। सुबह 11 बज रहे थे। मंच लगा हुआ था। लाउड स्पीकर लगा था। नेताओं ने कहा पुजारी जी रामलला को भोग लगा दें और पर्दा बंद कर दें। मैंने भोग लगाकर पर्दा लगा दिया। एक दिन पहले ही कारसेवकों से कहा गया था कि आप लोग सरयू से जल ले आएं। वहां एक चबूतरा बनाया गया था।

ऐलान किया गया कि सभी लोग चबूतरे पर पानी छोड़ें और धोएं, लेकिन जो नवयुवक थे उन्होंने कहा हम यहां पानी से धोने नही आए हैं। हम लोग यह कारसेवा नही करेंगे। उसके बाद नारे लगने लगे। सारे नवयुवक उत्साहित थे। वे बैरिकेडिंग तोड़ कर विवादित ढांचे पर पहुंच गए और तोड़ना शुरू कर दिया। इस बीच हम रामलला को बचाने में लग गए कि उन्हें कोई नुकसान न हो। हम रामलला को उठाकर अलग चले गए। जहां उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।

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यहां चार छावनियां थीं, अब तीन बची हैं, बड़ी छावनी, छोटी हो गई और छोटी छावनी बड़ी हो गई, इन छावनियों में रहते हैं साधु-संत https://ift.tt/3hUutMf

पिछले कई सालों में अनेक बार अयोध्या पुलिस छावनी बनी है। पांच अगस्त को भूमि पूजन का कार्यक्रम है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दिन अयोध्या आएंगे। इस लिहाज से एक बार फिर अयोध्या की किलेबंदी शुरू हो गई है। बड़ी संख्या में सुरक्षा बल तैनात हैं। हर मुख्य सड़क पर पुलिस की बैरिकेडिंग है।

मतलब, एक बार फिर अयोध्या छावनी में तब्दील हो जाएगी। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि अयोध्या में कई छावनियां सालों से हैं और वहां साधु-संत रहते आ रहे हैं।

इन छावनियों का इतिहास भारत में मुगल काल के कमजोर होने के साथ शुरू होता है। हालांकि, इनका कोई लिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वैरागी साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए अयोध्या में एक साथ गुट बनाकर रहना शुरू किया और इनके एक साथ रहने की वजह से अंग्रेजों के समय उनके रहने की जगह को छावनी कहा जाने लगा।

कुछ समय पहले तक अयोध्या में चार प्रमुख छावनियां थीं- तुलसी दास जी की छावनी, बड़ी छावनी, तपसी जी की छावनी और छोटी छावनी। तुलसी दास जी की छावनी खत्म हो गई। खत्म होने की कोई साफ-साफ वजह तो कोई नहीं बताता लेकिन अयोध्या के रहने वाले मानते हैं कि उस छावनी में संतों का जाना-आना बंद हुआ और फिर धीरे-धीरे उसका वजूद ही खत्म हो गया।

बाकी बची तीन छावनियां आज भी आबाद हैं। आइए, एक-एक करके इन तीनों छावनियों में चलते हैं।

बड़ी छावनी
मुख्य अयोध्या शहर से दूर, एक किनारे में लगभग तीन एकड़ जमीन पर आबाद है ये छावनी। चारों तरफ बुलंद चारदीवारी है और आने-जाने के लिए एक दरवाजा है। इसे बड़ी छावनी क्यों कहते हैं? इस सवाल का कोई एक जवाब नहीं है। अलग-अलग जवाब हैं। एक का वजूद आस्था पर टिका है तो दूसरे का आकलन पर।

संतों के मुताबिक, बहुत पहले एक संन्यासी अपने साथ बारह सौ साधु-संतों के साथ घूमते हुए अयोध्या आए। वो चार महीने के लिए अयोध्या में डेरा डालना चाहते थे। चुकी उनके साथ और ग्यारह सौ साधु थे सो कोई तैयार नहीं हो रहा था। तब इस छावनी के पहले महंत श्री रघुनाथ दास जी महाराज ने उन्हें और उनके साथी साधुओं को यहां साल भर के लिए रोका। तभी इसे बड़ी छावनी कहते हैं।

बड़ी छावनी अयोध्या शहर से दूर तीन एकड़ में बनी है।

वहीं, पिछले कई साल से धर्म और उसके पीछे के मर्म पर लिखने वाले और इस वास्ते कई बार अयोध्या आ चुके पत्रकार भव्य श्रीवास्तव का मानना है कि संभवतः इसका लेना-देना केवल उस क्षेत्रफल से है, जिसमें छावनी आबाद है।

छावनी के बीच में एक मंदिर है और चारों तरफ छोटे-छोटे कमरे बने हैं। एक तरफ जो कमरे हैं, उनके सामने साधू निवास लिखा है और दूसरी तरफ जो कमरे हैं उनके दरवाजे पर अलग-अलग लोगों के नाम और उनके जन्मस्थान लिखे हैं। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे होटल में एक तरफ गर्ल्स होटल लिखा होता है तो दूसरी तरफ बॉयज होटल।

बड़ी छावनी में रहने वाले और खुद को छावनी का भक्त बताने वाले राम सरस इस बारे में बताते हैं, “देखिए। एक तरफ संत रहते हैं। उनकी दिनचर्या अलग होती है। एक तरफ भक्त रहते हैं और वो अपने हिसाब से रहते हैं। ऐसा इसलिए बनाया गया है ताकि भक्तों को संतों से और संतों को भक्तों से कोई दिक्कत ना हो।”

तपसी (तपस्वी) जी की छावनी
अयोध्या शहर के रामघाट इलाके में स्थित है ये छावनी। भव्य इमारत और इमारत पर की गई कारीगरी से सहज अंदाजा हो जाता है कि छावनी बहुत पहले से आबाद है। छावनी के बाहर पुलिस का पहरा रहता है। इसकी वजह आपको आगे बताएंगे।

अभी तो आप ये जानिए कि ये छावनी उन साधु-संन्यासियों के लिए बनवाया गया था जो जंगलों और पहाड़ों में तपस्या करते थे। जब वो घूमते-घूमते अयोध्या आते थे तो उनको ठहरने में और अपनी दिनचर्या बनाए रखने में दिक्कत होती थी। इन्हीं बातों का ख्याल रखते हुए इस छावनी का निर्माण हुआ।

तपस्या करने वाले साधु-संतों के ठहरने के लिए तपसी छावनी का निर्माण हुआ था।

खुद का परिचय जगतगुरु परमहंस आचार्य जी के रूप में करवाते हैं और इनके समर्थक इनको इस छावनी के वर्तमान महंत बताते हैं। जब हमने इनसे पूछा कि इस छावनी का निर्माण कब हुआ तो वो बोले, “अयोध्या में सबसे प्राचीनतम पीठ और सबसे सिद्ध पीठ तपसी जी की छावनी है। इसके बाद अयोध्या में कई छावनियां बनीं लेकिन सबसे पुरानी छावनी यही है।”

ऐसे ही दावे बड़ी छावनी में रहने वाले संत भी कर चुके हैं। इन दावों का कोई प्रामाणिक आधार नहीं है। बस अपनी-अपनी मान्यताओं के आधार पर जो जिस छावनी से जुड़ा है उसे सबसे पुराना बताता है।

तपसी छावनी के महंत परमहंस आचार्य जी।

तपसी छावनी का जिक्र पिछले साल नवंबर में तब राष्ट्रीय स्तर पर हुआ था जब परमहंस आचार्य यानी संत परमहंस दास ने राम जन्मभूमि न्यास के महंत नृत्यगोपालदास पर कथित तौर पर अभद्र टिप्पणी की। इसके बाद महंत नृत्यगोपालदास के समर्थकों ने उनको घेर लिया। उन पर हमला किया। पुलिस आई तो ही वो बाहर जा सके।

तब परमहंस दास को तपस्वी छावनी ने ये कहते हुए निष्कासित कर दिया था कि उनका आचरण अशोभनीय था। स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि इसके बाद वो महीनों तक इधर-उधर भागे-भागे फिर रहे थे। जब उन्होंने अपने गुरु से माफी मांगी तो उनकी वापसी हुई। इसी घटना के बाद से छावनी के बाहर पुलिस के जवानों की तैनाती रहती है।

छोटी छावनी
आज की तारीख में अयोध्या की सबसे महत्वपूर्ण यही छावनी है। बाकी सभी छावनियों की तुलना में यहां चहल-पहल ज्यादा रहती है। सीआरपीएफ के चार जवान सुरक्षा में तैनात रहते हैं। वजह ये है कि इस छावनी के वर्तमान महंत नृत्यगोपालदास हैं।

सबसे ज्यादा चहल-पहल छोटी छावनी में ही रहती है।

राम मंदिर आंदोलन के अहम किरदार रहे अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास हैं और सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद राम मंदिर निर्माण के लिए बनाए गए 'श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं।

छोटी छावनी के महंत नृत्यगोपालदास।

इस छावनी को छोटी छावनी के नाम से ही अयोध्या में लोग जानते हैं, लेकिन कुछ साल पहले इसका नाम बदलकर श्री मणिराम दास छावनी कर दिया गया। बिना अपनी पहचान जाहिर किए एक संत इसकी वजह बताते हैं। वो कहते हैं, “हम तो छोटी छावनी ही जानते थे। कुछ साल पहले नाम बदल दिया गया। शायद महंत जी को छोटी छावनी कहने में अच्छा नहीं लगता होगा।”

छोटी छावनी के अंदर सीआरपीएफ की पोस्ट।

पांच अगस्त को अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने की सम्भावना है। तैयारियां हर ओर हो रही हैं। छोटी छावनी यानी श्री मणिराम दास छावनी में भी चहल-पहल बढ़ी हुई है। अयोध्या की सभी छावनियों में आज इस छावनी का कद और प्रभाव सबसे ज्यादा है। इस वजह से बाकी छावनियों के महंतों के मन में एक कसक दिखती है। कोई भी खुलकर नहीं बोलता लेकिन करने पर ये साफ-साफ समझ आता है कि छोटी छावनी के प्रभाव का बड़ा हो जाना, बाकियों को रास नहीं आ रहा है।

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